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भगत सिंह
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“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा”

“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।”

“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।”

“महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।”

Thursday, February 11, 2021

ओम प्रकाश खरे , जौनपुर : एक सामयिक रचना

एक सामयिक रचना

ओ, बापू जिन बीजों को,
तुम बोकर चले गए ।
उन्हें अंकुरित होने का,
परिवेश न मिल पाया।

हार गयी है दुनिया, 
उच्छृंखलता खूब बढ़ी।
ऋषियों-मुनियों का संदेश,
इन्हें न मिल पाया ।

फैली हिंसा की लहरें,
सब आपस में लड़ते ।
बढ़ा उपद्रव इतना,
जीवन जरा न हिल पाया।

कहलाये नंगे फकीर तुम,
बढ़ी नग्नता इतनी।
वस्त्रहीनता बनी समस्या,
रूप न खिल पाया ।

छद्म बस गया रोम-रोम में,
सत्य डूबता जाये ।
कांटों से ही देश भर गया,
फूल न खिल पाया ।

बमबाजी, आतंकी किस्से,
ठौर-ठौर पर दिखते ।
वैमनस्य के भाव बढ़ गये,
दिल ना मिल पाया ।

ओम प्रकाश खरे , जौनपुर

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