मातु शारदे! ऐसा वर दो |
ज्ञान-दीप अंतस में धर दो ||
नाश तिमिर का हो जाए माँ |
शोक हृदय का खो जाए माँ |
आक-बबूल भरे मरुथल को-
हे माँ!तुम चंदन-वन कर दो ||
गूँजे वेद-ऋचाएँ घर-घर |
प्रेम-समीर बहे माँ! सर-सर |
संबंधों में बढ़े मधुरता-
वाणी में अमरित-रस भर दो ||
टूटे मन के तार जोड़ मैं |
छंद रचूँ छल-छंद छोड़ माँ |
जहाँ प्रीति का निर्झर हो माँ-
वहीं एक छोटा सा घर दो ||
-वसंत जमशेदपुरी
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