मुझे बेशक गुनहगार लिखना
साथ लिखना मेरे गुनाह,
हक की रोटी छीनना ।
मैंने मांगा था,
किंतु,
मिला तो बस,
अपमान,
संदेश,
उपदेश,
उपहास,
और बहुत कुछ ।
जिद भूख की थी,
वह मरती मेरे मरने के बाद ।
इन,
अपमानो,
संदेशों,
उपदेशो,
उपहासो,
से पेट न भरा,
गुनाह न करता
तो मर जाता मैं,
मेरे भूख से पहले ।
मुझे बेशक गुनहगार लिखना
लिखना,
मैं गुनहगार था,
या बना दिया गया ।
हो सके तो,
लिखना,
उस कलम की,
मक्कारी,
असंवेदना,
चाटुकारिता,
जिसकी
नजर पड़ी थी,
मुझ पर मेरे गुनाहगार
बनने से पहले
लेकिन,
उसने लिखा मुझे,
गुनहगार बनने के बाद ।
- सूरज सिंह राजपूत , जमशेदपुर , झारखंड
यह कविता निम्नलिखित पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है ।
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