सूरज का दरवाजा खोला जाएगा
सूरज का दरवाज़ा खोला जाएगा।
जान गंवाकर भी सच बोला जाएगा।।
यहाँ शहीदों ने बोयी क़ुर्बानी है,
इसीलिए लहराती धरती धानी है।
प्रेम के ढाई आखर सारे ग्रन्थों में
दोहों में हँसती कबिरा की बानी है।
ऐसी माटी-बोली की अंगनाई में,
तन-मन-जीवन का रस घोला जाएगा।।
आग लगाने वाले दण्ड उठाएंगे,
बाहर या भीतर के हों, पछतायेंगे।
कल तक बोते थे खेतों में, लेकिन अब,
उनकी छाती पर बन्दूक उगाएंगे।
इन्क़लाब की आग अभी तक ज़िन्दा हैं,
इतिहासों से भी उठ शोला आएगा।
सिंहासन पर रहने वालो! याद रहे,
देश प्रथम, कुर्सी की महिमा बाद रहे।
लोक-भाव के स्वाभिमान का मान रहे,
आज़ादी में देश सदा आज़ाद रहे।
हमें नहीं रूचि फ़िर से किसी गुलामी की,
सौदागर का सीना तोला जाएगा।।
© नेहा ओझा
देवरिया उत्तर प्रदेश
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