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भगत सिंह
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“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा”

“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।”

“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।”

“महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।”

Thursday, January 31, 2019

साक्षात्कार : आदरणीय अनिरूद्ध प्रसाद सिंह ( संस्थापक व संरक्षक मुक्ति निकेतन )

साक्षात्कार के समय का फोटो मुक्ति निकेतन केप्रांगण में
राष्ट्र चेतना पत्रिका में आप सभी का स्वागत है

मैं सूरज सिंह राजपूत और आज हमारे साथ हैं मुक्ति निकेतन के संस्थापक संरक्षक आदरणीय अनिरूद्ध प्रसाद सिंह जी  आदरणीय अनिरूद्ध प्रसाद सिंह जी आपको प्रणाम ,

प्रश्न - 1 : आदरणीय पहले हम आपसे मुक्ति निकेतन के विषय में एक संक्षिप्त परिचय जानना चाहेंगे

श्री अनिरूद्ध प्रसाद सिंह : मुक्ति निकेतन संस्था का स्थापना दिनांक 21 जनवरी 1985 को हुआ । यह संस्था 
  • Society Registration Act से निवंधित है
  • Foreign Contributions Act से निवंधित है
  • Income Tax Act से निवंधित है
  • नीति आयोग से निवंधित है
  • यह संस्था Legal Status रखती है
 प्रतिभा भास्कर,b.ed कॉलेज आदि मुक्ति निकेतन के अंतर्गत आते हैं

प्रश्न -2 : आधुनिकता के दौर में जहाँ सभी स्वयं में व्यस्त हैं ऐसे में मुक्ति निकेतन जैसी संस्था का गठन करना, समाज सेवा करना ये प्रेरणा आपको कहाँ से मिली ?

श्री अनिरूद्ध प्रसाद सिंह : मैं बहुत हीं साधारण परिवार से था मेरा बचपन एक ऐसे किसान परिवार से प्रारम्भ हुआ जिसकी आर्थिक स्थिति अति दैनिय थी मेरे अध्ययन काल में समाज बहुत उदार था
चूंकि मैं अध्ययन में कुशल था अतः सबो का भरपूर स्नेह मिला , समाज के लोग अक्सर कहा करते थे खुब मेहनत करो और कोई दिक्कत हो तो बताना ।उस समय किताब कि किमत मेरे लिए अहम मुद्दा था , हमलोग बाँस का कलम बना दवात में स्राही भर कर लिखा करते थे

मुझे आज भी वह दिन याद है जो मैं कभी नहीं भूल सकता मेरे पास के गाँव राजवाडा के सूर्यदेव तिवारी जी एक दिन दोपहर 12 बजे मेरे घर आये और मुझे एक दवात भेंट किया और कहा तुम इसमें स्याही भर कर लिखते रहना खूब लिख सकोगे उस समय मेरी हालत एक दवात खरीदने तक कि ना थीं और उनहोंने एक स्याही का पुडिया भी दिया उनकी मदद् ने मेरे मन पर गहरी छाप छोड़ी तब मैं कक्षा 9 का विद्यार्थी था मेरा घर नदी के पास मे था नदि किनारे घूमते - घूमते मैं ने यह प्रतिज्ञा ली कि मैं नौकरी कभी भी नहीं करूंगा, पढूंगा जरूर लेकिन इसी जन्मभूमि , इसी मातृभूमि के लिए अपना जीवन दूसरों के मदद् में लगा दूंगा ।उसी का प्रतिफल है यह मुक्ति निकेतन

प्रश्न -3 : आपने मुक्ति निकेतन द्वारा संचालित विद्यालय का नाम प्रतिभा भास्कर हीं क्यों रखा ?

श्री अनिरुद्ध प्रसाद सिंह : प्रतिभा एक सूक्ष्म बिन्दु के रूप में हर किसी में विद्यमान होती है जब हम इसे निखारने का प्रयास करतें हैं तो यह कलपना भी करतें हैं की यह भास्कर बन कर निखरे जिससे एक सभ्य ऊदार समाज कि स्थापना हो सके

विद्यालय का नाम करण काफि चिन्तन के बाद किया गया, यह विद्यालय का नाम किसी व्यक्ति विशेष या किसी संस्था के नाम पर रख कर मूल संदर्भ को देखते हुए विधालय का नाम प्रतिभा भास्कर रखा गया ताकि यह विधालय बाल प्रतिभा को पहचान कर इस भाव से काम करे ही हर बच्चा मे एक सूर्य छिपा है जिसमें समाज को प्रकाशित करने कि असीम संभानाये हैं

प्रश्न - 4 : " पत्थर से पत्थर टकराना आसान है
पत्थर चीर कर रास्ता बनाना आसान नहीं होता "
आदरणीय आज मैं डॉ संजय पंकज . शैलेन्द्र पाण्डेय ' शैल ' जी साथ-साथ वन भ्रमण कर रहा था तो आपके विष्य में बारे में काफी चर्चा और यह भी पता चला कि यह वन भी आपके कर्मफल का हीं देन है

श्री अनिरूद्ध प्रसाद सिंह : ( हंसते हुए ) मैं हमेशा यह प्रश्न से बचना चाहता हूँ लेकिन फिर भी आपने पूछा है तो मैं बताना चाहूँगा सन 1985 में यह क्षेत्रफल एक विरान मात्र था आप अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि 1985 के समय मुझे पूजा करने के लिए दुभ तक बगल के गाँव लाना पडता था किन्तु आज हमारे वन क्षेत्र में 1
हाँ यह भी सच है कि यह वनस्पति संपदा मुक्ति निकेतन का हीं देन है

प्रश्न 5 : आदरणीय प्रतिभा भास्कर विद्यालय में 5 भाषाओं का अध्ययन अनिवार्य किया गया है साथ ही आप Computer को भी एक भाषा के हीं रूप में देखते हैं कृपया अपना पक्ष स्पष्ट करें

श्री अनिरुद्ध प्रसाद सिंह : चुकी मेरा मानना हैं विद्या जीवन के लिए है बस नाम मात्र के लिए नहीं विधा ऐसी होनी चाहिए जो जीवन को सुसंस्कृत बनाये जो जीवन को सुव्यवस्थित बनायें सच्ची विधा मनुष्य को मर्यादित तथा समाज मे जिने योग्य बनातीं हैं अगर हम केवल किताबों के बोझ तले हीं विधा तलाशेंगे तो बह मात्र शब्दो में हीं सिमट कर रह जायेगी

  • बेरोजगारों का फौज तैयार करना क्या यह शिक्षा हैं ?
  • नकारात्मता कि भावना से भर कर बच्चों का जीवन व्यस्क में बदल देना शिक्षा का सही रूप नहीं
  • परावलंबि होना कभी शिक्षा नहीं हो सकती

 एक साधारण जीवन जीने के लिए समाज में रहने का सही तरीका भी जरूरी है अन्यथा मनुष्य निंदनीय बन जाता है

पाँच भाषाओं को हम ने स्थानीयता को देख कर जगह दी है हमारे यहां हिन्दू मुस्लिम आबादी अधिक संख्या में है हमने जो अनुभव किया कि भाषा ज्ञान ही समाजिक मतभेद को मिटा सकता है । आज हमारे मुसलिम बच्चे भी गीता पढते हैं और हिन्दु बच्चे भी कुरान इससे आने वाले समय में दोनों समुदायों के बीच एक उच्च मानवता का सरोकार पैदा होगा स्वतह ही बच्चो में अपनत्व का भाव उत्पन्न होगा

आज English and Computer जैसे विषय समय के मांग है इस बात को भी हम नकार नहीं सकते
अतः सुव्यवस्थित सौहार्दपूर्ण वातावरण के निर्माण हेतु, हमारे सपनों का समाज बन पाये इन विषयों का ज्ञान जरूरी है

प्रश्न - 6 : आदरणीय आपने निर्णय किया कि नौकरी नहीं करूंगा लेकिन नौकरी आज के समय कि मांग है रोजगार कि संख्या में लगातार कमी ऐसे समय में हमारी युवा पीढ़ी क्या करे आप क्या कहना चाहेंगे ?

श्री अनिरुद्ध प्रसाद सिंह : वास्तव में रोजगार कि संख्या में लगातार आती कमी हमारे लिए चिंतनिय हैं परन्तु चिंता समाधान तो नहीं । मेरे बातों का गलत मतलब  निकालें लेकिन अब भारत को रोजगार ढूंढने के बजाए रोजगार देने के विषय में विचार करना चाहिए

हमें हस्त शिल्प जैसे मुद्दों पर विचार करना चाहिए आज हमारे मुक्ति निकेतन के बच्चे आपको मुझसे बेहतर बता सकते हैं ऐसा मुझे लगता है ( हंसते हुए )

प्रश्न  7 : आपके सिध्दांत क्या है ?
श्री अनिरुद्ध प्रसाद सिंह : प्रेम से बडा कोई धर्म नहीं, कोई हथियार नहीं ।सत्य, ईमानदारी तथा सदभाव आदि प्रेम के स्तंभ हैं

जय माँ भारती

साक्षात्कारकर्ता : 
सूरज सिंह राजपूत ( संपादक राष्ट्र चेतना पत्रिका )



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