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Friday, January 15, 2021

राजेश देशप्रेमी ( जमशेदपुर , झारखण्ड ) : फटी किताब


फटी किताब


फटी किताब
शब्दों का भंडार
दुर्भाग्य
चिथड़ों में बिखरा
शब्दों का जाल
चाह कर भी
समझना नहीं आसान
वैसे ही
जैसे घर के रेक
किताबों से भरी पड़ी
और रखने वालों में
पढ़ने की ललक नहीं
तब सारा किताब
मात्र कोरा कागज
उनका होना, न होना
रखता नहीं कोई मायने
आदमी भी ज्ञान का भंडार
किताब आदमी की देन
जैसा भाव, वैसा श्रृंगार
समाज में घृणा और प्यार
बांटना आदमी के हाथ
ज्ञान बांटने से बढ़ता
मगर कुछ लोग स्वार्थ में
बांटने के बजाय
अपने तक समेटे रखते
परिणाम, उनके साथ ही
खत्म हो जाता उनका हुनर
और समाज सदा के लिये
उस ज्ञान से हो जाता वंचित
फिर वैसा ज्ञान, वैसा ज्ञानी
समाज के किस काम का
सवाल गंभीर, जबाब नदारत
विद्धान गुटबाजी के शिकार
अहंकार बन रहा संस्कार
वाहवाही के लोभ में
लोग खो रहे मर्यादा
मन में सम्मान नहीं
पर बेर्शर्मी से एक - दूसरे का
गा रहे आदर गीत
झूठी वाहवाही के लिये
कलम का कर रहे बंटाधार
पद - पैसा - तगमा के लिये
बेच रहे अपना ईमान
झूठी शान में नकार रहे सत्य को
गुटबाजी के भरोसे
चाह रहे वैतरणी पार
चापलूसी के बदौलत बन रहे महान
फटी किताब की तरह
न शब्द ज्ञान, न कलम में धार
कोरा कागज की तरह फड़फड़ा
फैला रहे सिर्फ गंदगी
दुर्भाग्य, ऐसे लोग ही आज महान ।

© राजेश देशप्रेमी , जमशेदपुर , झारखण्ड

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