आपका हार्दिक स्वागत है !!

भगत सिंह
भगत सिंह
भगत सिंह
भगत सिंह

“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा”

“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।”

“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।”

“महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।”

Tuesday, October 20, 2020

जिंदगी की किताब से दिल के अरमान : लक्ष्मी सिंह ( जमशेदपुर , झारखण्ड )

 


जिंदगी की किताब से दिल के अरमान

जब पापा के अरमानों को सुनती थी मम्मी की तैयारियां देखती थी भाई-बहन को खुशियों से उलझते देखती थी ना जाने क्यों यह सब देख मन बड़ा बेचैन हो जाया करता था।

मैं क्या हूं मैं खुद नहीं समझ पाती थी मेरे अरमान तुम कहां छुपे बैठे हो आकर मुझे ले जावना अपना सहारा देके मुझे अपना बना लो ना जाने क्यों यह सब देख मन बड़ा बेचैन हो जाया करता था।

कब तक सपनों के सहारे जियू अब तो नींद से सोने में भी डर लगता है कहीं सपने भी मुझे से रूठ ना जाए ना जाने क्यों यह सब देख मन बड़ा बेचैन हो जाया करता था।

आखिरकार वो दिन आ ही गए पापा के अरमान मम्मी की तैयारियां करना भाई बहन की खुशियों से उलझना और मेरे सपनों का टूटना न जाने क्यों यह सब देख मन बड़ा बेचैन हो जाता था।

मेरे द्वार पर शहनाई सुन सखियों का मंगल गीत गाना एक परिवार से दूर होकर दूसरे परिवार में जाना ना जाने क्यों यह सब देख मन बड़ा बेचैन हो जाया करता था।

आखिरकार मेरे सपने टूट ही गए अपने मन को यह नहीं समझा पा रही थी कि मेरे नैनों से अश्रु जो बह रहे थे वह अपनों से दूर जाने का था या अपने सपनों के टूटने का न जाने क्यों यह सब देख मन बड़ा बेचैन हो जाया करता था।

दूसरे सफर पर चल तो पड़ी थी कई उलझनों को साथ लेके पर ना जाने क्यों साथ किसी का देख अरमान जाग रहे थे मन में डर भी था कहीं सपना फिर से ना टूट जाए नए परिवार को देख मन कांप जाता था कि ये अपने हो पाएंगे कि नहीं न जाने क्यों यह सब देख मन बड़ा बेचैन हो जाया करता था।

मैं बड़ी किस्मत वाली हूं यह मालूम ना था जिंदगी की गाड़ी जहां से रुकी थी वहां से फिर चल पड़ी पिया का साथ नई उम्मीदों के साथ मिला घर बाबुल का छोड़ पिया के आंगन की तुलसी बन जाऊंगी यह मालूम न था सास ससुर में मम्मी पापा की परछाई देख मन बड़ा प्रफुल्लित हो जाता ये रिश्ता कब तक निभा पाऊँगी ये मालुम न था ना जाने क्यों ये सब देख मन बड़ा बेचैन हो जाया करता था।

आज एक और जिम्मेदारी मील गई मुझें जैसे मानो अपने सपनों को साकार करने की राह मिल गई मुझे माँ बन के सुख का जो अनुभव हुआ वह अनुभव बड़ा आंनदायक था।

मेरे अरमान में फर्क सिर्फ इतना था कल जो सपने अपने लिए देखें आज वो सपने अपनी बिटियां के लिए देखी बिटिया के सपनों को साकार करना मेरा जुनून बन गया था।

मन मे एक डर सा बैठ गया था कि कही कोई मेरे सपनों को चुरा न ले।

ना जाने क्यों ये देख मन बड़ा बेचैन हो जाया करता था।

जिंदगी में सब कुछ मिल जाए तो जीने का क्या मजा जीवन को जीने के लिए एक कमी भी जरूरी है।

लक्ष्मी सिंह ( जमशेदपुर, झारखण्ड )

4 comments:

  1. मेरी अपनी एक ताजा कविता - नमन करें हम राष्ट्रनिर्माता को
    संस्कार , भारत संस्कार
    ज्ञान और विज्ञान
    अपनी भाषा अपनी बोली
    मातृभाषा में होगी शिक्षा
    मातृभाषा अपना विज्ञान
    नवशोध हो नवज्ञान
    आत्मनिर्भर भारत का
    सपना होगा तब साकार
    फिर हम होंगे विश्वगुरु
    होगा हम सबका सपना साकार
    नमन करें हम राष्ट्रनिर्माता को
    जय - जय भारत जय विशाल

    ReplyDelete
    Replies
    1. विनोद वार्ष्णेय
      W-7/1, Housing Colony , Adityapur -1 Seraikella ,kharswan
      Jharkhand pin 831013

      Delete
  2. राष्ट्र चेतना देश को नयी दिशा दे रही है ।

    ReplyDelete