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भगत सिंह
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“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा”

“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।”

“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।”

“महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।”

Thursday, February 11, 2021

ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र ( जमशेदपुर , झारखंड ) : केशर की क्यारियों से

श्रृंखला  : केशर की क्यारियों से 
भाग – 3

वहाँ पहुँचते ही पता चला कि पर्ची मिलनी शुरु हो गयी है। काफी भीड़ इकट्ठी होनी शुरु हो गयी। वहाँ काऊंटर तक पहुंचने के काफी पहले से सिर्फ एक ही लाईन में घुसना था। उस जगह से लेकर पीछे एक किलो मीटर तक पहले दो लाईन, फिर चार - चार पंक्तियाँ बन गयीं। ऊपर चमकता सूरज आज आग बरसाने में कोई कमी नहीं रख रहा है। बच्चे, बूढे सबों की फिजिकल उपस्थिति जरूरी थी, इसलिये सारे पक्तिबद्ध थे। इतने में देखा गया कि एक बच्चा बेहोश हो गया। जो पुलिस सबों को डण्डे दिखाकर पंक्तिबद्ध करने में अपने ड्यूटी का मुश्तैदीपना दिखा रही थी, उसे उस बच्चे का बेहोश हो जाना दिख नहीं रहा था। हमारे प्रधान मन्त्री देश को स्वच्छता से लेकर देशभक्ति का मन्त्र पूरे देश को दे रहे हैं लेकिन तन्त्र अपने पुराने अंदाज में ही काम कर रहा है। मेरा सुझाव है कि देश की सारी पुलिस को कुछ दिन मिलिट्री कैम्प में ट्रेनिंग दी जानी चाहिये और उनकी बॉर्डर पर पोस्टिंग भी दी जानी चाहिये, तभी शायद उनमें देश भावना की समझ आ जाये। अन्यथा वे आम जन को वैसे ही समझते रहेंगें जैसे अंग्रेजों के जमाने की ब्रिटिश पुलिस फोर्स आम भारतीय को समझते रहे थे।

हमलोग अखिकार दो घन्टे लाईन में खड़े रहने के बाद करीब बारह बजे अपनी-अपनी पर्चियां लेकर डेरे पर आ गये। तय हुआ कि हमलोग नहा-धोकर यहीं से तैयार होकर तुरत वैष्णो देवी भवन की यात्रा शुरु करेंगें। मैने अपनी पत्नी और ग्रुप के साथ बाण गंगा प्रवेश द्वार तक पहुँचकर अपनी यात्रा करीब एक बजे अपराह्न शुरु कर दिये। 
यात्रा की चढ़ाई मेरे जैसे 65 वर्ष के थोड़े कमजोर घुटने वाले ब्यक्ति के लिये कठिन थी। मेरी पत्नी ने अन्य लोगों के साथ पैदल ही यात्रा करने की ठानी। मैं भी उनके साथ कदम से कदम मिलाकर करीब दो घन्टे चला होगा। इतने में मेरे घुटने जवाब देने लगे। मैने पत्नी को कहा, "क्या किया जाय?"
उन्होने कहा, "आप घोड़ा ले लीजिये।"
मैंने पूछा, "आप क्या पैदल जायेंगीं? "
उन्होने कहा, "जब तक चल सकूं, पैदल चलूंगी। नहीं, तो घोड़ा ले लूंगी।"

शायद वे समूह के अन्य लोगों के साथ देने की अहमियत से भी बंधी हुयी साथ चलने के निर्णय पर चल रही हों। या धर्मार्थ कार्यों में कष्ट सहन करने के संस्कारगत मान्यताओं से बंधे हुये भी उन्होने माता रानी के चरणों तक चरणों से ही जाने की कठिन व्रत- साधना पालन करने के प्रति प्रतिबद्धता का निर्वहण कर रही हो। अर्धकुमारी से चढ़ाई सीधी थी। उसमें थकावट ज्यादा महसूस होती है। 
इस तरह हम सभी लोग भवन के करीब 7 बजकर 30 मिनट शाम में पहुँच गये।

हमलोग कीमती और जरूरी समान जिसमें मोबाइल आदि चीजें थी,  रखने की जरूरत के लिये, लॉकर रुम के लिये कोशिश में लगे तो पता चला कि उसके लिये लम्बी लाईन लगी है। और शायद यह भी खबर आयी कि लॉकरों की संख्या भी खत्म हो गयी है। श्राईन बोर्ड की अब्यवस्था या ऐसी स्थिति को सम्भाल सकने की अक्षमता साफ - साफ दिख गयी। अब हमलोगों को अपनी योजना बदलने की जरूरत आ पड़ी।

निर्णय यह हुआ कि मैं और ललन जी सामान के साथ इन्तजार करेंगें और बाकी लोग पक्तिबद्ध हो गेट न 3 से प्रवेश करेंगें। इसी में मेरी पत्नी भी थी। इतने में देवी जी की आरती का समय हो गया। पूरी की पूरी पंक्ति का मूवमेंट भी रुक गया। पीछे के तरफ भीड़ भी बढ़ती जा रही थी। यह भीड़ अव्यवस्थित हो रही थी। पुलिस बल भी तैनात थी। लेकिन उससे ऐसी अव्यवस्था से निबटने के लिये पुलिस बल और श्राईन बोर्ड की किसी कार्य योजना का नहीं होना हम लोगों बहुत खला।
जब हम लोग इंतज़ार कर रहे थे, उस समय कुछ लोग अपनी परेशानी का बयान कर रहे थे, वहीं पर बैठे हुए एक बुजुर्ग जैसे सज्जन ने कहा, " भैया, जबतक आप यहाँ हैं, परेशानियों के बावजूद भी दर्शन किए, वे सारी परेशानियाँ यहीं तक याद रहेंगी। जब यहाँ से निकल जाओगे, यहाँ की सारी परेशानियाँ भूल जाओगे और सिर्फ याद रह जायेगा कि माता रानी के दर्शन हमने कर लिया है।" मुझे उनका यह वक्तव्य काफी सकारात्मक लगा।

हमलोगों के काफी इंतज़ार के बाद रात के 11 बजे वे लोग दर्शन के उपरांत वापस आये। आते ही पहली खबर मिली कि पत्नी के कान के एक तरफ का कर्णफूल किसी ने खींच लिया। इसपर अफसोस जाहिर करते हुए शोक मनाने का समय नहीं था। इसके बाद  करीब 45 मिनट में घुमावदार मार्ग से होते हुए देवी जी की पुरानी गुफा से होते हुए टनेल मार्ग पर जा पहुंचे। वहाँ दर्शन का लाभ लेकर हमलोग अपने समूह से आकर मिल गये।

फिर मिलेंगे केशर की क्यारियों से श्रृंखला के अगले भाग में , धन्यवाद

ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र ( जमशेदपुर , झारखंड )

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