सुबह ,शाम,दिन और रात खफा है
खुश देख मुझे मेरे हालात खफा हैं ।
जिंदगी पे तंज करती मेरी गजलों से
हुस्न और इश्क़ के जज्बात खफा हैं ।
कैसे जिंदा हूँ इन हादसों के बाद भी
अपनी नाकामियों से वफात खफ़ा हैं ।
आंखों में आसूँ भी आने से कतराते हैं
मायूस हो कर मेरे मुश्किलात खफ़ा हैं ।
हद कर दिया अजय तूने जिंदादिली मे
हँसी में छुपे तेरे गम-ए-हयात खफ़ा हैं
अजय प्रसाद
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