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भगत सिंह
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“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा”

“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।”

“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।”

“महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।”

Friday, October 11, 2019

ए ज़िंदगी ( मुकेश बिस्सा )



ए ज़िंदगी

ए ज़िंदगी
तू ही बता अब
किस पथ पे जाना है ?
कौनसी राह सुहानी है ?
कौंन यहां अपना हैं ?

ए ज़िंदगी
कैसी आज की सुबह है ?
शाम कैसी होगी आज ?
सुख और दुख की ,
आंख मिचौली चलती रहेगी ?

ए ज़िंदगी
क्या अभी नवीन ?
और क्या प्राचीन ?
होना है कब तक जीर्ण शीर्ण ?
अपनी कसी मुट्ठियों में
ए जिन्दगी
किसे दर्द बताना है ?
किससे दर्द छुपाना है ?
या रहना है ,
अपने में ही मशगूल ?

ए जिंदगी
कब तक दौड़ना ?
है इस अंधी दौड़ में
कब विश्राम ?
अब लेना है ?

ए जिंदगी
कब तक  पहचान छुपानी ?
कब तक ये बतानी ?
ये राह सुहानी है
थोड़ी जानी पहचानी है

ए जिंदगी
क्या यही वजूद है ?
जिसका नही कोई  कहानी है
सवाल भी खुद
जवाब भी खुद

मुकेश बिस्सा,
ध्यापक विषय गणित विभाग, केंद्रीय विद्यालय ,जैसलमेर

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