ए ज़िंदगी
ए ज़िंदगी
तू ही बता अब
किस पथ पे जाना है ?
कौनसी राह सुहानी है ?
कौंन यहां अपना हैं ?
ए ज़िंदगी
कैसी आज की सुबह है ?
शाम कैसी होगी आज ?
सुख और दुख की ,
आंख मिचौली चलती रहेगी ?
ए ज़िंदगी
क्या अभी नवीन ?
और क्या प्राचीन ?
होना है कब तक जीर्ण शीर्ण ?
अपनी कसी मुट्ठियों में ।
ए जिन्दगी
किसे दर्द बताना है ?
किससे दर्द छुपाना है ?
या रहना है ,
अपने में ही मशगूल ?
ए जिंदगी
कब तक दौड़ना ?
है इस अंधी दौड़ में ।
कब विश्राम ?
अब लेना है ?
ए जिंदगी
कब तक पहचान छुपानी ?
कब तक ये बतानी ?
ये राह सुहानी है ।
थोड़ी जानी पहचानी है।
ए जिंदगी
क्या यही वजूद है ?
जिसका नही कोई कहानी है ।
सवाल भी खुद ।
जवाब भी खुद ।
मुकेश बिस्सा,
ध्यापक
विषय गणित विभाग, केंद्रीय विद्यालय ,जैसलमेर
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