फ़ोन पर ज़ाहिर फ़साने हो गए
ख़त पढ़े कितने ज़माने हो गए
ऐब इक पाला फ़क़त हमने मियाँ
चार सू अपने ठिकाने हो गए
बेटियाँ कोठों की ज़ीनत बन गयीं
किस क़दर ऊँचे घराने हो गए
इश्क सोचे समझे बिन कर तो लिया
नाज़ अब मुश्किल उठाने हो गए
घर में फिर सजने लगेंगीं महफिलें
दिन अगर तेरे सुहाने हो गए
बाँट कर नफ़रत मिली नफ़रत मगर
प्यार से हासिल खज़ाने हो गए
जानते कमज़ोरियाँ माँ बाप की
आज के बच्चे सयाने हो गए
बलजीत सिंह बेनाम , ज़िला हिसार ( हरियाणा )
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