ना चरखे से , ना चमचे से
ना मीठी - मीठी बोली से
है आजादी ये मिली हमें
कई रक्तपात की होली से
मां भारती की आरती , अद्भुत व अद्वितीय है वह आरती जिस आरती में मां भारती के वीर सपूतों ने तेल के जगह अपना लहू लगाया है, जिस आरती के दीप में बाती के स्थान पर मां भारती के वीर सपूतों ने अपना जीवन व जवानी लगाया है ।
अविस्मरणीय है वह आरती जिस आरती के आन खातिर मां भारती के वीर सपूतों ने अपने गले से फांसी को गौरवान्वित बना दिया , पूज्यनीय है मां भारती के वीर सपूत जिन्होंने गोली की औकात अपने सीने पर नापा हो, जिन्होंने तलवारों की धार को अपने गले से लज्जित कर दिया जिन्होंने मौत को मजबूर कर दिया कि वह अहंकार ना करें ।
इस धरती पर कोई तो है जिसके पास मौत का खौफ नहीं , बेशक मौत को अहंकार करने का सही वजह प्रदान किया हो ।
मैं नमन करता हूं उस माटी को जिस माटी के वीर सपूत ने मुट्ठी में मां माटी को भरके नमन करता है और खुद को कुर्बान कर देता है । ऐसे ही लाखों विचार मन में अपार हर्ष का संचार करते हैं, कभी-कभी जी मचलता है क्यों न स्वयं पर हंकार करूं क्यों ना खुद पर ..... क्यों ना ईश्वर का आभार व्यक्त करूं जिन्होंने मुझे इस माटी में जन्म देने योग्य समझा ..... !
जब जहन में आता है कि आज उन्हीं महापुरुषों, महाबलीदानियों, मां भारती के सच्चे पुत्रों पर राजनीति होने लगी है । मन कचोट नहीं लगता है उनके पक्ष में अभद्र शब्दों का प्रयोग शब्द जो स्वयं पर लज्जित होते रहे हैं शब्द जिन्होंने स्वयं पर ग्लानि महसूस किया होगा कि मैं शब्दकोश में आया ही क्यों ?
यह बातें सिर्फ कल्पना है आप ऐसा समझ सकते हैं किंतु मेरे शब्द कल्पना से कहीं परे है मुझसे और स्वयं से बात करते हैं अपने गलत प्रयोग पर प्रश्नवाचक चिह्न लिए मुझसे सवाल करते हैं और मैं उन्हें उत्तर ना दे पाता हूं तो चीख चीख कर कहते हैं तुम्हें मुझे प्रयोग करने का कोई अधिकार नहीं है अक्सर जवाब ना होने पर मैं शब्दों की कमी महसूस करता हूं कमी जो आज महसूस कर रहा हूं कमी , जो शायद महसूस करता रहूंगा ।
कुछ लोगों का विचार जो मुझे अक्सर को कचोटता है कि आप उनके पक्ष में तलवार लेकर खड़े क्यों नहीं हो जाते हैं, मैं हंसता हूं खुद पर और उनकी मानसिकता पर कि जिन्होंने हमें आजादी उपहार स्वरूप भेंट की हो क्या उनके स्वाभिमान की रक्षा तलवार से करें जिन्होंने तलवार की धार को जीभ से चाट कर तलवार की धार को ललकार हो , जिन्होंने शत्रुओं के शीश थोंकों में काटा हो , यह लोग उसके पक्ष में तलवार की बात करते हैं कितने पागल हैं सूर्य के सामने दीपक के लिए अधिकार की बात करते हैं ।
जय हिन्द जय भारत
जो मां माटी के ध्वजवाहक
जो संघर्षों की भाषा है
मैं उन्हें पूजता हूं मन से
जो क्रांति की परिभाषा हैं
जो जुगनू की रिहाई में
सारे सूरज कटवा आए
है स्वाभिमान सर्वोच्च सदा
देकर बलिदान जता आए
जो मातृ भूमि की रक्षा में
पार उम्र के जाते हैं
जो 80 के उम्र में आकर
वीरभद्र बन जाते हैं
जो रणचंडी अमित के प्यास को
अपना लहू पिलाते है
जो मां माटी के रक्षा में
हंसकरके शीश कटाए हैं
मैं इन वीरों के चरणों में
अपना शीश झुकाता हूं
मैं इन वीरो के चरण धुली को
अपने शीश सजाता हूं
सूरज सिंह राजपूत , संपादक राष्ट्र चेतना पत्रिका
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