खामोश
नजरें खामोश ओठ कॉपते रह गये
भंबर सा जिन्दगी उलझन में फंस गये
होश रहा नहीं अपनी पहचान का यारों
उसके जाने की अदा तो देखते रह गये
काश: उसे जाने ना देते हम महफिल से
जिन्दगी खुशियो की रोशनी में नहा लेते
अरमान दिल में ही दफन हो गया यारों
जिन्दगी खामोशी में ही बित रही है यारों
शिवनन्दन सिहं , ( जमशेदपुर , झारखण्ड )
सूचना :
यह रचना राष्ट्र चेतना पत्रिका के 06 अंक में भी प्रकाशित की गई है ।
यह अंक दिनांक 11 जनवरी 2021 , सोमवार को प्रकाशित हुआ था ।
धन्यवाद
सूरज सिंह राजपूत
संपादक राष्ट्र चेतना पत्रिका
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