तु हीं बता
तेरा खत खोजें या
अपनी खता खोजें
तुझे भूलाने को और
हम क्या क्या खोजें ।
वो चेहरा जो उतरता
नही निगाहों से
खुद को समझाने को
कहाँ मुखौटा खोजें ।
तुझको चाहा ,तुझको
हीं हमनें पूजा है
तु हीं बता की तुझ
सा कहाँ खुदा खोजें ।
दर्द इतनी हसीन है
तेरी मोहब्बत की
कोई बेवफा हीं इसकी
फिर दवा खोजे ।
ऐसी दिवानगी की जिक्र
और क्या करना
जो न काशी और न कभी
काबा खोजे ।
© बसन्त कुमार
कोषाध्यक्ष , अखिल भारतीय साहित्य परिषद,
जमशेदपुर
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