मन का अंधेरा करो तुम दूर
दीप जलाकर सबसे पहले
मन का अंधेरा करो
तुम दूर
भूल गए हो इंसानों
की प्रवृत्ति
रहते हो खुद से तुम
दूर !
दया,ममता, प्रेम,
करुणा सब
भूलकर तुम बैठे हो
इंसानों की शक्ल में
क्यों
हैवानों सा तुम करते
हो !
मन का मैल धुल जाने
दो
नफरत को भी बह जाने
दो
फिर से रोशन हो जाने
दो
प्रेम के दीपक जल
जाने दो !
© निक्की शर्मा ‘ रश्मि ‘ , मुम्बई
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