पिता मात्र एक शब्द नहीं सृष्टि औऱ संसार हैं
पिता की छाया संतानों पर अम्बर सा विस्तार हैं
ऊसर भूमि, परिवार का वृष्टि औऱ पालनहार हैं
पिता से हैं सम्बंध जीव का माँ की गोद से बाहर का
सम्यक जीवन जीने का दृष्टि औऱ संस्कार हैं
डूबती नैय्या भँवर में जब,तब पिता ही खेवनहार हैं
हर मुश्किल हर संकट में बच्चों के,पिता ही तारनहार हैं
पिता से ज्ञान जो मिलता उससे हिम्मत पौरुष हैं आता
ईश्वर सी हैं वाणी वचन ,पिता का बुध्दि व्यवहार हैं
पिता प्रत्यक्ष इस सृष्टि जगत में अप्रत्यक्ष का प्रमाण हैं
पिता सृष्टि के निर्माता औऱ देवों का अवतार हैं
पिता की वाणी वेद कुरान सी पावन औऱ पवित्र हैं
पिता के सिवा बच्चों ख़ातिर, नहीं दूसरा भगवान हैं
घर परिवार गृहस्थी का पिता ही संविधान हैं
खुलें हुए दर दरवाज़ें का पिता ही पहरेदार हैं
उमर अपनी थम जाती हैं देख पिता को साथ में
बुढ़ा पिता भी बैठा दर पर लगता थानेदार हैं
बोली वचन औऱ वाणी घर में पिता का शासन हैं
डाँट डपट औऱ धौंस बच्चों पर पिता का प्रशासन हैं
बचा नहीं कोई नैतिकता जहाँ पर होता नहीं पिता
दृश्य अदृश्य रूप पिता का जीवन में अनुशासन हैं
पंगत रहन सहन पिता का नैतिकता का पाठ हैं
रंगत रूप रंग पिता का भौतिकता का साथ हैं
जिसकें अंग रूह में सारे परमात्मा का वास हैं
संगत साथ बात पिता का बौद्धिकता का ज्ञान हैं ।।
© बिमल तिवारी "आत्मबोध" देवरिया उत्तर प्रदेश
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