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भगत सिंह
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“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा”

“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।”

“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।”

“महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।”

Friday, August 27, 2021

कविता : तलाश || लक्ष्मी सिंह जमशेदपुर झारखंड

 

तलाश

जिंदगी के सफर में,

मंजिल की तलाश में,

चलते चलते इतनी दूर आ गई,

शायद अब मंज़िल मिल जाएगी - 2

मंज़िल तो मिली नहीं पर,

ठोकरे हजार लगे ।


कभी रिश्तों ने ठोकर मारे तो,

कभी अपने बन के लोगो ने ठोकर मारे।

अब तो आलम कुछ यूं है ,

जिन्दगी भी जिद पर आ गई है 

शायद उसे भी ठोकर मारनी है।


फिर भी मैं नहीं हूंगी हताश, 

तन में जब तक  है साँस 

तब तक,

मंजिल की तलाश में 

चलती जाऊँगी। 

हजार ठोकरे खाते हुए ।


अपने आस को कभी टूटने न दूँगी ,

इस आस के सहारे, 

भटकते भटकते, 

मुझे मेरी मंजिल मिल जाएगी,

खड़ी कहीं किसी राह पर 

मेरा इंतिजार करते हुए ।


लक्ष्मी सिंह

जमशेदपुर झारखंड

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