तलाश
जिंदगी के सफर में,
मंजिल की तलाश में,
चलते चलते इतनी दूर आ गई,
शायद अब मंज़िल मिल जाएगी - 2
मंज़िल तो मिली नहीं पर,
ठोकरे हजार लगे ।
कभी रिश्तों ने ठोकर मारे तो,
कभी अपने बन के लोगो ने ठोकर मारे।
अब तो आलम कुछ यूं है ,
जिन्दगी भी जिद पर आ गई है
शायद उसे भी ठोकर मारनी है।
फिर भी मैं नहीं हूंगी हताश,
तन में जब तक है साँस
तब तक,
मंजिल की तलाश में
चलती जाऊँगी।
हजार ठोकरे खाते हुए ।
अपने आस को कभी टूटने न दूँगी ,
इस आस के सहारे,
भटकते भटकते,
मुझे मेरी मंजिल मिल जाएगी,
खड़ी कहीं किसी राह पर
मेरा इंतिजार करते हुए ।
लक्ष्मी सिंह
जमशेदपुर झारखंड
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