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भगत सिंह
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“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा”

“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।”

“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।”

“महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।”

Thursday, February 11, 2021

ब्रह्मदेव बन्धु , मुंगेर ( बिहार ) : क्या कहें सब चादरों में दाग़ निकला है

ग़ज़ल

क्या कहें  सब चादरों  में दाग़  निकला है
है कहीं गिरगिट, कहीं तो नाग निकला है

हाथ  जोड़े  जब  खड़े   थे   बेसुरे सब थे
मुट्ठियाँ  जो तान  दी  तो राग   निकला है

शख़्स वो  ज़ाहिर  है  कोई    देवता होगा
कोठरी काजल की  थी बेदाग़  निकला है

टिक नहीं पाया बग़ावत   की  हवाओं में
ये किला साबुन का जैसे झाग निकला है

हड्डियों का एक ढांचा भर    बचा उसको
हर समय बेरंग उत्सव फाग   निकला  है

ब्रह्मदेव बन्धु , मुंगेर ( बिहार )

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