वेदांत का सूर्य था वह,
सनातन धर्म का तूर्य था वह।
उसके आनन पर था तेज मनस्वी ,
उसकी वाणी में था आवेग ओजस्वी।
उसने विश्व मंच पर
प्रकट किया भारत का तेज पुंज।
उसके उद्घोष से
सनातन धर्म की फैली थी गूंज।
सम्मोहक था रूप, आंखों में करुणा अपार,
विश्व धर्म संसद में फैला हृदय का विस्तार।
वह युवाओं का करते आह्वान,
भारत हमारा फिर से हो महान।
वह उद्दत था काटने को
भारत माँ की जंजीरें।
वह ढाहने को सजग थे
गुलामी की खड़ी प्राचीरें।
वह योगी निर्लिप्त, निष्काम,
वह योगी समेटे करुणा तमाम।
वह सन्यास की अग्नि में
स्वयं को तपाया करते थे।
वह युवाओं में आगे बढ़ने को
विश्वास जगाया करते थे।
आएं उनके पद चिन्हों पर
अपना भी चरण बढ़े।
भारत का हो उत्कर्ष
फिर यह विश्व गुरु बने।
ब्रजेंद्रनाथ मिश्र ( जमशेदपुर , झारखंड )
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