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“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा”

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Thursday, August 27, 2020

सूरज सिंह राजपूत ( जमशेदपुर , झारखण्ड ) : मैंने भूख लिखा

 

मैंने भूख लिखा

मैंने भूख लिखा

फिर भी
न लिख सका
वह ' भूख '
जो उसे लगी थी !
मेरे भूख में
बेरोजगारी
मंदी
समीक्षा
अशिक्षा का जिक्र था ।
उसके भूख में बस ' भूख ' !


मैंने भूख लिखा
फिर भी
न लिख सका
वह ' भूख '
जो उसे लगी थी !
मेरे भूख में
लाचारी
बंदी
परीक्षा
परिक्षा का जिक्र था ।
उसके भूख में बस ' भूख ' !


मैंने भूख लिखा
फिर भी
न लिख सका
वह ' भूख '
जो उसे लगी थी !
क्योंकि,
भूख लिखते वक्त
मैं ट्रेन के ए. सी. बोगी में था ।
वह भूखा प्लेटफार्म पर !
क्योंकि,
भूख लिखते वक्त
मैं अपने ए. सी. कार में था ।
वह भूखा सिग्नल पर !


मैंने भूख लिखा
फिर भी
न लिख सका
वह ' भूख '
जो उसे लगी थी !
क्योंकि,
मैंने भूख लिखना चाहा ।
उसने भूख मिटाना !
क्योंकि,
मेरे भूख से अलग थी ।
उसकी ' भूख ' !


- सूरज सिंह राजपूत

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