कहानी : यक्ष प्रश्न
राधाचरण जब बारह साल का था तब हमारे घर आया था।उस समय वह एक फटी कमीज़ और थिगड़ी लगा निकर पहने था।मैल और मिट्टी से लिथड़े नंगे पांव, खिचड़ी और रुखे बाल, आंखें गढ़ों में धंसी हुई,श्याम वर्ण, कृशकाय बदन,जिसे पहली नजर में देखकर घिन आती।पता नहीं कबसे नहीं नहाया होगा।घर के सारे बच्चे उसे कौतूहल से देखने लगे और मन ही मन सोचने लगे कि मां इस मरियल लड़के को भगा देंगी।कितना गन्दा है ,हमारा क्या काम करेगा।
लेकिन परिणाम हमारी सोच के विपरित रहा। मां ने उसे देखा और सोचा-इसे जब ठीक से खाना मिलेगा तो बदन भर जाएगा। यहां रहकर चौंका बर्तन और घर की सफाई कर दिया करेगा। बाजार से सामान ला देगा।इतना बड़ा घर है किसी कोने में पड़ा रहेगा।इतने सदस्यों के बीच इसकी दो रोटी क्या भारी पड़ेगी।बचे खुचे में ही पल जाएगा।
सही सोचा मां ने। वैसे भी घर में एक नौकर की जरूरत तो थी ही।सभी कालेज जाने वाले, मां का हाथ कौन बटाएं। अकेली मां सबकी जरुरतें पूरी करते करते निढाल हो जाती। राधाचरण में उन्हें अपना सहारा नजर आया। हां थोड़ा सिखाना पड़ेगा। मां ढूंढ ढूंढ कर बाइयां लाती रहती।वे थोड़े दिन ठीक से काम करती, फिर उनकी मांगे शुरू हो जाती।मांगे पूरी न होती तो काम छोड़ जातीं। राधाचरण को तो कहीं जाना ही न था।
राधाचरण का दुनिया में कोई नहीं था।बाप उसके जन्म के कुछ दिन बाद ही अधिक शराब पीने के कारण मर गया। मां तालाब पर ढोरों को पानी पिलाते समय पांव फिसलने से डूब कर मर गई।करीब दो दिन बाद फूली हुई लाश बरगद की मोटी जड़ों में उलझी हुई मिली।
गरीब का क्या जीना क्या मरना कौन था जो राधाचरण के आंसू पोंछता।या उसे कलेजे से लगाता। वह अनाथ हो गया।कुछ दिन मोहल्ले वाले अपने साथ खिलाते पिलाते रहे। आखिर वे भी कब तक पालते।सभी रोज कुंआ खोदकर पानी पीने वाले थे।एक दिन गांव के प्रधान जी राधाचरण को नौकरी का लालच देकर पिताजी के पास छोड़ गए।
घर में नाक पोंछने से लेकर कपड़े धोने तक का काम मां ने बड़े धैर्य से उसे सिखाया। राधाचरण सुबह उठकर डेरी से दूध लाता।सबके लिए चाय बनाता।घर की सफाई करता। मां नाश्ता बनाती और वह मेज पर लगा देता। टिफिन हमारे बस्तों के पास रख देता। जूते पालिश कर लाइन में लगा देता।स्कूल जाने के बाद सबके कपड़े धोता।जब मां खाना बना लेतीं तब वह रसोई की सफाई करता।
धीरे धीरे उसके नाम के पीछे से चरण हट गया और वह सबके लिए राधा हो गया।किसी का रुमाल न मिलता तो राधा को आवाज लगती।हम लोग पैन पेंसिल इधर उधर रखकर भूल जाते तो राधा ही ढ़ूढ कर लाता।कुछ दिन में ही सारा घर राधामय हो गया.
मां एक बार में जितना खाना राधा को दे देतीं ,वह उतना ही खाकर संतुष्ट हो जाता। पूछने पर इंकार में सिर हिला देता।कभी कभी मां टाफी चाकलेट हमसे लेकर उसे भी थमा देतीं और कहतीं-"इसका भी मन करता होगा।"
राधा पूरा काम मेहनत और ईमानदारी से करता। हमेशा खुश रहता। उसकी सेहत संभल गई थी।अब खूब साफ सुथरा रहता।घर का सारा काम उसने संभाल लिया था। पिताजी को भी आराम मिल गया था। दफ्तर जाते समय सामान की लिस्ट और थैला मां ने पिताजी को देने बंद कर दिए थे।राधा रात को पिता जी के पांव दबाता। रविवार को हम भी बालों में चम्पी करा लेते।
राधाचरण हसरत भरी नजरों से हमारी किताबें देखता। मैंने अपनी पुरानी स्लेट,एक खाली कापी,चाक के टुकड़े और एक पेंसिल उसे दे दी।खाली समय में दो चार अक्षर समझा देता।वह उन अक्षरों की नकल कर उन्हें पढ़ना लिखना सीख लेता। बिना स्कूल गए ही उसे अक्षर ज्ञान हो गया।
मां उस पर खूब मेहरबान रहती। जाड़े के कपड़े मां उसके लिए पटरी बाजार से स्वेटर ,मफलर और मोजे खरीद लाईं। पुराने रजाई गद्दे का बिछौना तैयार कर दिया। बरामदे की जगह उसे स्टोर में स्थान मिल गया।जैसे मां के अपने बच्चों को सर्दी गर्मी लगती है वैसे ही उसे भी लगती है। महीने पर पगार लेने का कोई मतलब ही नहीं था।मां तीज त्योहार पर दो चार रुपए उसके हाथ पर रख देती,वह खुश हो उठता।उसका अपना कोई खर्च न था।न उसका कोई यार दोस्त न घर परिवार।उसकी तरफ से हम निश्चित थे और हमारी तरफ से वो।
समय आराम से खिसकता रहा।घर में सदस्यों की संख्या बढ़ी तो राधाचरण पर काम का दबाव।घर में बहुएं आईं तो बेटियां भी बिदा हुईं।हर आयोजन में भाग दौड़ कर सबको संतुष्ट करता रहता। सारे रिश्ते दार उससे परिचित ही नहीं हुए बल्कि उसकी तारीफ भी करते।
हमारी नौकरियां बाहर लगीं और हम मां पिताजी को राधाचरण के सहारे छोड़ कर निश्चिंत हो गये। छुट्टियों में घर आते तो राधाचरण खूब प्रसन्न होता। दौड़कर सबके काम करता।हम लौटते समय दस बीस रुपए उसकी मुट्ठी में थमा जाते और पुराने कपड़े दे जाते।वह सौगात समझकर ले लेता और उन्हें पहनकर इठलाता घूमता।वह मन से भी हमारे घर को अपना घर समझने लगा था।खाने पीने की कोई कमी नहीं थी। जैसे जैसे युवा होता गया कद काठी अच्छी निकलती गई। उसने अपने घर गांव को कभी याद नहीं किया।कभी लौटकर भी नहीं गया।प्रधानजी हमारे यहां पंहुचा कर भूल गए थे।
हमारे दिए रुपए मां को थमा देता।
राधाचरण की बात सुनकर दोनों गदगद् हो जाते।जिस दिन राधा को कहीं जाना होता,वह दुगुने उत्साह से जल्दी जल्दी काम निबटाता।प्रेस किए कपड़े पहनता। बालों में तेल लगा कर कंघी करता। साइकिल धो पोंछ कर चमकाता।और इठलाता हुआ पिक्चर देखने निकल जाता।चलते समय मां हिदायत देती-"राधा ,समय से ही घर लौट आना।"
राधाचरण को हमारे यहां रहते हुए पंद्रह साल गुजर गए। पिताजी रिटायर हो गए।इतने दिनों में राधा चरण सभी अच्छी बुरी बातें जान गया।वो मां पिताजी की आशाओं का केंद्र और खाली समय में वार्तालाप का मुख्य आधार था। अपने अतीत की और रिश्तों की बातें राधाचरण से करते।वह रस ले लेकर उनकी बातें सुनता। रिश्ते क्या होते हैं वह नहीं जानता था।इन सामाजिक पारिवारिक संबंधों के बारे में उसने जो भी जाना हमारे पास रहकर जाना।
राधाचरण मां पिताजी के साथ ही कमरे में बैठकर टीवी देखता।उनके साथ चर्चा में भाग लेता। अकेले रहकर वह मुख्य भी हो गया था। मां पिताजी बढ़ती उम्र के साथ राधाचरण पर ज्यादा निर्भर होते जा रहे थे। पहले खाना और नाश्ता मां बनाती थीं,अब राधाचरण ही बनाने लगा था।काम का बोझ भी अब उतना नहीं रहा था। मां अक्सर राधाचरण को सपने दिखाती-"कोई ठीक सी लड़की देखकर तेरा भी घर बसा दूंगी।"
सुनकर राधाचरण शरमा जाता।घर परिवार के सपने उसकी आंखों में उगने लगते।उसका भी कोई अपना होगा-ये सोच कर उसे अच्छा लगता।
एक बार राधा चरण बीमार पड़ा।पूरे पंद्रह दिन ठीक होने में लग गए। मां पिताजी ने प्राइवेट नर्सिंग होम में इलाज कराया। खूब सेवा की।फल दूध सभी दिए। राधाचरण उनके बुढ़ापे की लाठी था।यदि लाठी ही टूट गई तो बुढ़ापा कैसे कटेगा।फिर भरोसे लायक नौकर मिलता कहां है।वे दोनो भी राधा के साथ संतुष्ट हैं।
कभी कहीं घूमने जाते तो राधाचरण को भी साथ ले जाते।राधा से चार काम का सहारा रहता।राधा भी उनके साथ घूम आता। लेकिन इन पंद्रह दिनों में वे घर का काम भी करते और नर्सिंग होम भागते,राधा की भी देखभाल करते।हम फोन पर समझाते-
मां झल्लाकर कहतीं-"तुम्हें क्या मालूम यहां कितनी मुश्किल हो रही है।"
राधाचरण भी अच्छी तरह महसूस करने लगा था कि मां पिताजी दोनों उस पर निर्भर हैं।न उनके बेटे यहां आएंगे और न ये घर छोड़कर जाएंगे। बुढ़ापे में घर का मोह और भी जोड़ता है।बस मां पिताजी ने एक काम ही उसे नहीं सौंपा था। रुपए पैसे का हिसाब स्वंय रखते।पैसा निकालने या जमा करने स्वंय ही बैंक जाते।
पिताजी ने राधाचरण के नाम से भी एक खाता बैंक में खोल दिया था। जिसमें पांच सौ रुपए महीना जमा कराते थे। राधाचरण से उन्हें इतना लगाव हो गया था कि उसका भविष्य भी सुरक्षित करना चाहते थे। उन्हें लगता था कि उनके बाद वह फिर सड़क पर आ जाएगा।उसे सेवा कार्य का प्रतिफल कुछ तो मिलना चाहिए। बैंक खाते में राधाचरण की अच्छी भली रकम हो गई। लेकिन उन पैसों को उसने कभी छुआ ही नहीं।
राधाचरण की दोस्ती पड़ोस के नौकर कमलेश से हो गई।अक्सर दोनों खाली समय में बैठकर बतियाने रहते। कमलेश भी मां पिताजी के पास आकर बैठने लगा।राधा जब बाजार गया होता वह घर आ जाता।
कमलेश चाय बनाकर लाता तो मां कहतीं-
कमलेश एक प्लेट में बिस्कुट निकाल ला। मां दो बिस्कुट उसे भी थमा देती।इस प्रकार कमलेश का आना जाना भी हमारे घर शुरू हो गया।किसी दिन कुछ स्पेशल बनता तो मां राधा को भेज कर कमलेश को बुला लेती।
एक दिन राधा चरण ने मां से कहा-"मां,आज की रात कमलेश भी यही सो जाए।उसे काम से हटा दिया है।सुबह होते ही अपने घर चला जाएगा।"
अम्मां ने चेतावनी दी।उसके मालिक नाराज होंगे कि उनके नौकर को तुमने बिगाड़ा है। फालतू के झंझट में नहीं पड़ना चाहिए।
राधा के साथ कमलेश भी आ गया। राधाचरण ने खाना बनाया और प्रतिदिन की तरह सबको खिला दिया।खाना खाने के बाद दोनों जल्दी सो गए।
सुबह दूध वाले ने आकर घंटी बजायी। बहुत देर तक घंटी बजाता रहा।और राधा राधा चिल्लाता रहा।फिर उसने पड़ोस में जाकर पूछा। पड़ोसी दूधवाले के साथ चले आए। दरवाजे पर हाथ रखा दरवाजा खुल गया।अंदर जाकर राधा राधा पुकारने लगे लेकिन राधा का कहीं पता न था।
वे मां पिताजी के कमरे में गये। दोनों सो रहे थे। पहले लोगों ने आवाजें दीं। फिर हिला डुला कर देखा। दोनों हमेशा के लिए सो चुके थे।सारी अलमारियां खुलीं पड़ीं थीं।राधा और कमलेश मां पिताजी को खाने में जहर देकर उनका सारा सामान लेकर चले गए थे।
पड़ोसियों ने पुलिस को सूचना दी । बेटों को फोन किए।डाक्टर ने दोनों का पोस्टमार्टम किया। रिपोर्ट से पुष्टि हुई कि दोनों की मृत्यु जहर से हुई है।सारी खाना पूर्ति हुईं।दो चार दिन खूब शोरगुल रहा।सब देखते रह गये।किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि राधाचरण ऐसा भी कर सकता है। दोनों के फोटो अखबार में छपवाए गए। टेलीविजन पर प्रसारित हुआ। मीडिया ने खूब उछाला, लेकिन अब तक लोग धीरे-धीरे भूलने लगे। जिंदगी फिर पटरी पर लौटने लगी।केस फाइल हो गया।
मां पिताजी की मृत्यु अखबार की छोटी सी खबर बनकर रह गई। आखिर उनकी मृत्यु के लिए कौन जिम्मेदार रहा? उनके अपने बच्चे या सड़क से उठाकर लाया गया राधाचरण?अक्सर यह प्रश्न मेरे सामने खड़ा हो जाता है......
- सुधा गोयल
कृष्णा नगर,डा.दत्ता लेन , बुलंद शहर
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