शीर्षक : बजट की हुंकार कोरोना के वार और महंगाई से हाहाकार , बीच में पिसता मध्यवर्गीय संसार
प्रत्येक वर्ष के बजट की तरह इस वर्ष का बजट भी सभी वर्गों के लिए अच्छा है घोषणा ही करता नजर आ रहा है लेकिन मनों के बीच उठते सवाल और सच परिस्थितियों के आगे खामोश ही नजर आ रहे हैं ।
परिस्थितियों ने लोगों को कोरोना जैसी महामारी और एक वर्ष की गतिहीनता कोरोना में जहां लोग अपना काम धंधा छोड़ के घरों में बैठ गए हैं। कुछ समय तक तो जोड़ी हुए पूंजी से खाने की जरूरतों को पूरा करता हुआ आम इंसान अपना समय निकाल रहा था। इस दौर का ज्यादा असर मध्य वर्गीय परिवारों और उन लोगों के ऊपर पर पड़ा है जिनके घर में एक भी सरकारी नौकरी वाला नहीं ।
कोरोना काल में ज्यादातर प्राइवेट नौकरियों से भी लोगों को हाथ धोना पड़ा । मध्यवर्गीय परिवारों की यह विडंबना रही है और सबसे ज्यादा असर भी उनके ऊपर पड़ा है, जिनके पास ना तो उच्च वर्ग की तरह जमा पूंजी है और ना ही निम्न वर्ग की तरह कुछ भी मांग कर अपनी जरुरतों को पूरा करने की हिम्मत है।
क्योंकि यह परिवार ... ना तो निर्धन रेखा से नीचे आते हैं । ना ही कमाई के ऐसे सशक्त साधन है कि अपना उत्पादन करके बेच सकें ।
ऐसा नहीं है कि कोरोना काल में लोगों ने कमाई नहीं की है । जो लोग अपना उत्पादन बेच सकते थे ,इन हालातों में बाजारों में दुकानदारों ने जरूरी चीजों के दाम इतने ज्यादा कर दिए हैं कि हर चीज के लिए कीमत चौगनी चौगनी वसूल कर रहे हैं इस बीच मध्य वर्गीय परिवार जो मकान का किराया, बिजली -पानी के बिल , बच्चों के स्कूल की ऑनलाइन क्लासेस की फीस और ऊपर से बेरोजगारी के कारण आठ महीने से घर पर बैठकर अपने भविष्य की चिंता कर रहा है । आर्थिक त्रासदी के साथ-साथ मानसिक त्रासदी को भी भोग रहा है ।
लोग ज्यादातर बाजार में जरूरत की चीजें लेने जाते हैं जरूरत के दूसरे समान अगर किसी ने लेने की जरुरत पड़ गई है तो उस वस्तु की कीमत दुकानदार ज्यादा वसूल रहे हैं।
इस महामारी में जहां हर तरफ मौत अपना पांव पसारे खड़ी है। आए दिन सैकड़ों मामले कोरोना के आ रहे है फिर भी इंसान का यह लालच थम नहीं रहा है वह और ज्यादा और ज्यादा जो ग्राहक भी आ रहे हैं उसे मन माना दाम वसूल कर रहे हैं। हर चीज के भाव बहुत ज्यादा हो गए हैं। खाने-पीने और राशन की जरूरतों तो हर इंसान ने पूरी करनी ही है। सब्जियों के दाम भी पहले से बहुत ज्यादा हो गए हैं।
देश के हालात आर्थिक स्थितियां चिंताजनक स्थितियों से गुजर रही है।
इस तरह की वसूली बहुत ही चिंता जनक है। जो लोग दुकानदार नहीं है और प्राइवेट नौकरियों के तहत जिनके काम बंद थे अब हालात बदलने पर कुछ लोगों को ही नौकरी के अवसर मिल पाए हैं ।अपना रोज का काम- धंधा चलाना मुश्किल हो गया है क्योंकि जरूरी चीजें तो सब ने ही लेनी है।
जिसके पास जो चीज है वह अपनी चीज के दाम जो भी ग्राहक आ रहा है एक ही व्यक्ति से वसूल करना चाहता है। प्रधानमंत्री जी का आत्मनिर्भर भारत मन की बात तक ही सीमित होकर रह गया है । क्योंकि इन मध्यवर्गीय परिवारों जिनकी हमारे समाज में बहुत बड़ी संख्या है अवसर नहीं देख पाने से मानसिक अवसाद सभी बातों को धोता हुआ नजर आ रहा है कोरोना की मार से जो लोग बच गए हैं लगता है महंगाई और और देश की नीतियों और बजट की मार से नहीं बच पाएंगे।
प्रीति शर्मा "असीम " , ( नालागढ़ , हिमाचल प्रदेश )
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