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भगत सिंह
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“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा”

“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।”

“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।”

“महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।”

Monday, February 15, 2021

कविता : गोवर्धन सिंह फ़ौदार "सच्चिदानंद" , मॉरीशस : हे! माँ सरस्वती


हे! माँ सरस्वती!
हे! वीणा देवी
तू संगीत भंडार
दिल दिल की धड़कन
तत् सुषिर अवनद्ध घन
सूर लय लहरा ताल
गीत वाद्य नृत्य सम्मिश्रण
तू मीढ़ तू कण ढोल मृदंग।
तू सुकून शान्ति अपार। 
खयाल भजन तराना ठप्पा ठुमरी
रचनाएँ  भिन्न भिन्न 
शुद्ध कोमल तीव्र विकृत
स्वर श्रुति विभिन्न 
षढज ऋषभ गंधार मध्यम
पंचम धैवत निषाद परम्
आरोह अवरोह तान सरगम
गुंजे गुंज सदा कण कण।
सप्तक मन्द्र मध्य तार
मोहक रस छन्द श्रुति अलंकार
लय विलंबित मध्य द्रुत अतिद्रुत
करते स्वर चल अचल विस्तार।
शोभित समय सारिणी आधारित
राग रागिनी दस ठाठ अपार
वादि संवादि अनुवादि विवादि
सब मिल लाये सदा निखार।
गुणी ऋषि मुनि की प्रार्थना 
लोक परलोक आहट अंहट नाद
शान्त अद्भुत अमृत जीवन
 ध्याये  पाये हर जाये अवसाद।
नतमस्तक होते चरणों में
स्नेही बन बन स्थिर गंभीर
रहूं परे चंचलता से
बोल बोलूं मीठे
अर्पण करूँ श्रद्धा सूमन
दो आशीष
हे! कण्ठ वासिनी 
संवार दो अपनी तकदीर। 

गोवर्धन सिंह फ़ौदार "सच्चिदानंद" , मॉरीशस

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