मां शारदे !
तू आ रही है क्या ?
बढ़ गए भंवरों के गुंजार,
कलरवित होने लगे बाग-बाग।
नव पल्लव भी आने लगे,
मुकुल-तरु पर मुस्कुराने लगे।
रसाल से रस रिसने लगा,
महुवा-मद पुष्प बन चूने लगा।
यत्र-तत्र-सर्वत्र सुगंध सना,
मधुर वासंती वायु जीवन-प्राण।
मां शारदे।
तू आ रही है क्या ?
आमों के किसलय लाल लाल,
शीत झाड़ खिल उठे गुलाब।
कोयल की कूक पिक की पुकार,
मस्ती में झूमते गेहूं के बाल।
अलसी फूलों से नीले-नीले खेत,
दानों भरे सरसों फल के पेट।
रुक-रुक चल रही पवन पुरवाई,
बुझे दिल लेने लगी अंगड़ाई।
मां शारदे !
तू आ रही है क्या ?
तड़ाग का अमल जल मचल,
टकराए पुलिनों से बन ऊर्मि चंचल।
वीथियां लग रही रंग-बिरंगी,
सर्वत्र सजे पुष्प-पंखुड़ियां झड़-झड़।
मंद सुगंध से सुवासित पवन,
चलता ललक-ललक, मचल-मचल।
धुंध का धुंधुलका छटने लगा,
प्रणय निवेदन करती धरा सज-धज।
मां शारदे !
तू आ रही है क्या ?
सुदर्शन पाण्डेय , ( जमशेदपुर , झारखंड )
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