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भगत सिंह
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“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा”

“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।”

“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।”

“महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।”

Monday, February 15, 2021

सुदर्शन पाण्डेय , ( जमशेदपुर , झारखंड ) : मां शारदे !


मां शारदे !
तू आ रही है क्या ?
बढ़ गए भंवरों के गुंजार,
कलरवित होने लगे बाग-बाग।
नव पल्लव भी आने लगे,
मुकुल-तरु पर मुस्कुराने लगे।
रसाल से रस रिसने लगा,
महुवा-मद पुष्प बन चूने लगा।
यत्र-तत्र-सर्वत्र सुगंध सना,
मधुर वासंती वायु जीवन-प्राण।

मां शारदे।
तू आ रही है क्या ?
आमों के किसलय लाल लाल,
शीत झाड़ खिल उठे गुलाब।
कोयल की कूक पिक की पुकार,
मस्ती में झूमते गेहूं के बाल।
अलसी फूलों से नीले-नीले खेत,
दानों भरे सरसों फल के पेट।
रुक-रुक चल रही पवन पुरवाई,
बुझे दिल लेने लगी अंगड़ाई।

मां शारदे !
तू आ रही है क्या ?
तड़ाग का अमल जल मचल,
टकराए पुलिनों से बन ऊर्मि चंचल।
वीथियां लग रही रंग-बिरंगी,
सर्वत्र सजे पुष्प-पंखुड़ियां झड़-झड़।
मंद सुगंध से सुवासित पवन,
चलता ललक-ललक, मचल-मचल।
धुंध का धुंधुलका छटने लगा,
प्रणय निवेदन करती धरा सज-धज।
मां शारदे !
तू आ रही है क्या ?

सुदर्शन पाण्डेय , ( जमशेदपुर ,  झारखंड )

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