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भगत सिंह
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“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा”

“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।”

“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।”

“महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।”

Monday, February 15, 2021

कविता : देवेन्द्र बंसल , इंदौर : कविताओं के पहाड़ निकलते है


कविताओं के पहाड़ निकलते है

किसी के दर्द छलकते है,
तो किसी के ख़ुशी की कहानी,
कही प्रेम प्यार बरसता है,
तो कही विरह की कहानी ,
कभी रात में शब्द फुटते है,
तो कभी उजालो में ,शब्दों की रेलगाड़ी
चौराहे पर इंसानी दिल ,क्यूँ भटकते है?
मंज़िल तलाशते दस्तक देता बचपन ,
सोचता हूँ ,क्या इनकी यही बेसिक पढ़ाई है,
ग़रीबों की शिक्षा नीति की यही कहानी है?
कवि लिख सकता है ,जगा सकता है ‘देवेन्द्र’
मंचो से देश के सुलगते विषयों को रखता है,
हँसी ठिठोलि मर्यादा से दिलो को हिलाता है,
राष्ट्र हित में अपने आपको न्योछावर कर,
अपनी कलम से ,इंसानी दर्द ,
समस्या बाँटता है,
जागो जागो ,आज़ाद वतन के देश के मुसाफ़िरों ,
छल ,कपट ,स्वार्थ की आँधी से लड़ जाना है,
निर्मल ,स्वच्छ हृदय से ,
वतन की माटी का तिलक ,
हर भारतवासी को ,
गर्व से मस्तक पर लगाना है ।

देवेन्द्र बंसल , इंदौर

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