अब डेरे लौटने की जल्दी थी। हमलोगों को सुबह सात बजे ही पहलगाम के लिये प्रस्थान करना था। मैंने तो घोड़ा लेने का निर्णय ले लिया। पत्नी पुन: अपने धर्मार्थ कष्ट सहन में पुण्य अर्जन करने में प्रतिबद्ध दिखी। उन्होंने भी समूह के साथ पैदल उतरने का निर्णय लिया। मैं 4 सुबह बजे तक बाण गंगा के पास पहुँचा। वहां से औटो लेकर मैं अपने ठहरने के स्थान तक आ पहुँचा।
आते ही थोड़ी नींद ले लेनी चाहिये, सोचकर मैं सो गया। पत्नी करीब 6 बजे पहुँची । फिर उनका निर्णय मुझे कुछ अविवेक पूर्ण लगा था। आखिर उनलोगों को अर्धकुमारी यानी आधी उतरायी के बाद घोड़ा लेना ही पड़ा, अन्यथा सवेरे प्रस्थान में उनके कारण विलम्ब हो सकता था।
जम्मु कश्मीर यात्रा वृतान्त, 25-05-2018, शुक्रवार, चौथा दिन, Day 4:
पत्नी सीधे तैयार होने चली गयी। वे तैयार होकर निकली, तो मैं तैयार हुआ। हमलोगों की पहलगाम की यात्रा 9 बजे सुबह से शुरु हुयी। हमलोग एक Cheverelette Tavera SUV पर सवार होकर उधमपुर, क़ाज़ीगुंड से होते हुये पहलगाम 6 बजे शाम को पहुँचे।
इस यात्रा में, चेननी- नसरी के पास नई बनी करीब नौ किलोमीटर लम्बी सुरंग, को पार करना एक नये तरह के अनुभव से गुजरना था।
इस सुरंग ने जम्मु के कटरा से श्रीनगर की 300 किमी दूरी को कम करके 250 किलोमीटर कर दिया है। हिमालय पर्वत के अन्दरूनी पहाड़ों को बेधकर इतनी बड़ी दो सुरंगों का निर्माण, तकनीक और निवेश के साथ दृढ़ इच्छा शक्ति का भी परिचायक है। ये दोनों सुरंगें हर 300 मीटर के बाद मानव निर्मित और डिज़ाइन की हुई गुफाओ से आपस में जुड़ी हुई हैं। शायद यह दक्षिण एशिया की अब तक की सबसे बड़ी सुरंग है। रामबाण जिले में यह सुरंग पटनी टॉप आदि सुन्दर परिदृश्यों वाले स्थानों को बिना प्रभावित किए बनाई गयी हैं।
इस सुरंग से करीब 44 एव्लान्च और लैन्ड स्लाईड वाले क्षेत्रों में आसन्न खतरों से भी बचाव हो सकेगा।
चेनाब नदी के किनारे-किनारे उंचे पहाडों को काटकर बने सर्पीले सड़क मार्ग से गुजरना भी नए ऐडवेंचर की तरह था। अभी इस सड़क को फ़ॉर लेन बनाने का कार्य जोरों पर है। इससे ड़ायवरसन की भरमार है। धूल उड़ाती हुयी तवेरा लेकर हमारे चालक तारिक भट्ठ सुकून के साथ गाड़ी आगे बढ़ाते रहे।
इसी में बनीहाल पास की जवाहर टनेल छोटी सुरंग (ढाई कीलो मीटर) को भी हमने पार किया। कहा जाता है कि सर्दियों में इस सुरंग का प्रवेश द्वार बर्फ से ढंक जाता है, जिसे हमेशा साफ करने के लिये मशीने लगी होती हैं। यह सुरंग कश्मीर घाटी का प्रवेश द्वार है। बनिहाल अब रेल लिंक से श्रीनगर से भी जुड़ गया है। काज़िगुन्ड कश्मीर घाटी का पहला छोटा शहर है।
इसी सड़क से होते हुए अगर सीधे चलें तो अनंतनाग, 20 किलोमीटर और श्रीनगर करीब 60 किलो मीटर है। अगर दाहिने मुड़ जाएँ, तो 40 किलो मीटर पर पहलगाम है।
हमलोग कटरा से 8 घन्टे की यात्रा के बाद शाम में पहलगाम पहुँचे। यह अनंतनाग जिले का एक तहसील है। इसकी समुद्र तल से उंचाई करीब 7200 फीट है। लिद्देर नदी के स्फटिक की तरह साफ जल ने हमलोगों का स्वागत किया।
वहां हमलोग लिद्देर नदी से सटे हुये एक रेसोर्ट में ठहरे। वहाँ मैं जिस कमरे में ठहरा था उसके ठीक पूर्व में उंचा पहाड़ था। सामने कल-कल, छल-छल करते हुए लिद्देर नदी बह रही है। वैसे यह मंजर बहुत सुन्दर है, लेकिन एक चिन्ता की बात है। इस स्फटिक जैसे स्वच्छ जल में जब इन रेसोर्ट से निकले कचरे के अवशेष नदी में घुलेंगें तो क्या नदी की स्वच्छता शाश्वत रह पायेगी?
26-05-2018, शनिवार, पांचवा दिन (Day 5)
पहलगाम मेरी कश्मीर घाटी की यात्रा का पहला पड़ाव था। पता नहीं पहला पड़ाव था इसलिये या कुछ खास है इसकी निशब्द वादियों में, यह मेरा पहला प्यार भी बन गया। मैं बाद में सोनमर्ग, गुलमर्ग और श्रीनगर भी गया, लेकिन हर जगह प्रकृति के खुलापन में कुछ-न-कुछ बनावटीपन घुला हुआ लगा। यहाँ की प्रकृति अभी तक बिल्कुल अपने वास्तविक स्वरूप में है ।
मैं जहाँ ठहरा हूँ, वह लिद्दर नदी के किनारे का एक रेसोर्ट है। मुझे संयोगवश वह कमरा मिला हुआ है, जहाँ से लिद्देर नदी का कल-कल स्वर सुनाई देता है। स्फटिक-सा साफ जल पत्थरों पर लगातार बहते-बहते उन्हें गोल बना देता है। उन्हीं पर फिसलती हुई नदी, एक रूहानी संगीत को स्वर देती हुई बही जा रही है। यह घाटी, जो ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से घिरी है, उनके शिखरों पर इस मौसम (मई के उत्तरार्द्ध) में भी बर्फ की चादर देखी जा सकती है। यही बर्फ पिघलती है और झरनों की शक्ल में पहाड़ों से नीचे उतरती है और एक साथ मिलकर नदी का आकार ले लेती है। इस स्थान पर यह नदी बिल्कुल स्वच्छ और अप्रदूषित है, इसीलिये इसका सौन्दर्य अभी भी शाश्वत है, रूहानी है, आत्मिक है।
श्रृंखला : केशर की क्यारियों से
भाग – 4
ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र ( जमशेदपुर , झारखंड )
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