अपनी बात कहता हूं
सत्य बोलना मेरी आदत रहीं हैं,
जग मुझें बागी ना समझें ।
गर छुपाना मुझें नहीं आता,
कोई मुझें अब दागी ना समझें ।
मन की पीड़ा सहन नहीं होती,
ह्रदय की व्यथा बहुत कष्ट देतीं ।
कष्ट को सह नहीं पाता,
झूठ बस कह नहीं पाता ।
आदत अपनी बदल नहीं पाता,
बस अपनी व्यथा सुनाता ।
अपनी बात कहता हूं,
सदैव अपनी धुन में रहता ।
बस भावनाओं में नहीं बहता हूँ,
क्योकि बेबाक बोलता रहता हूँ ।
मानस ओझा , ( जमशेदपुर , झारखंड )
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