ऋतु बसन्त है आई
ऋतु बसन्त है आई !
बहे समीर सुखद मतवाला।
आया है ऋतुराज निराला।।
अंग - अंग मादकता छाई।
पोर-पोर जागे तरुणाई ।।
ऋतु बसन्त है आई !
पुष्प खिले हैं डाली-डाली।
कलियां झूम रहीं मतवाली।।
महक रही अमराई ।
पिक पंचम सुर गाई ।।
ऋतु बसन्त है आई !
मधुमय है ऋतुराज सुहाना।
कर देता उर को दीवाना।।
बही हवा पुरवाई।
रह-रह पीर बढ़ाई।।
ऋतु बसन्त है आई !
बसुधा के श्रृंगार सुहाये।
वासन्ती चूनर अति भाये।।
प्रकृति वधू मुस्काई।
बजी कहीं शहनाई।।
ऋतु बसन्त है आई !
माँ,का पूजन हो, वंदन हो।
वाणी का शत अभिनंदन हो।।
मंगलमय तिथि आई।
सृजनशीलता लाई।।
ऋतु बसन्त है आई !
ओम प्रकाश खरे , जौनपुर
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