ग़ज़ल : ज़िन्दगी
हर दौरे सफर में रहे ,आबाद ज़िन्दगी।
करती है रब से बस यही,फरियाद ज़िन्दगी।
चलती है कभी दूसरों,की रहनुमाई में,
बनती है कभी खुद ही,उस्ताद ज़िन्दगी।
इंसां में अगर प्यार-मोहब्बत नहीं बाकी,
हम मानते हैं उसकी,जल्लाद ज़िन्दगी।
नेमत खुदा की जानिए,हम सब की ज़िंदगी,
बुरी चाहतों से होती है,बर्बाद ज़िन्दगी।
मिलजुल के बांट लें,गम ओ खुशियां परस्पर,
न कीजिए किसी की,नाशाद*ज़िन्दगी। (नाखुश)
बिनोद बेगाना
जमशेदपुर , झारखंड
No comments:
Post a Comment