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भगत सिंह
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“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा”

“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।”

“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।”

“महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।”

Monday, June 17, 2019

सूरज का गुस्सा उचित - ( श्यामल सुमन )

सूरज का गुस्सा उचित

गरमी से तन जल रहा, जल बिन सब बेचैन।
पलक पसीना चू रहा, लड़ना मुश्किल नैन।।

निर्धनता के सामने, छोटे हैं सब रोग।
लू, ठंढक, बरसात में, मरते ऐसे लोग।।

लथपथ सर से पाँव तक, तुरत नहाने बाद।
मोल पसीने का बहुत, गरमी से बर्बाद।।

धीरे धीरे उम्र संग, बढता नित संसार।
मंहगाई, गरमी बढी, तेज बहुत रफ्तार।।

गरमी में ही आम को, मिले आम सौगात।
गरमी से गर जूझना, कर ले ठंढी बात।।

हरियाली जितनी अधिक, कम सूरज को क्रोध।
जग में सूरज जब तलक, है जीवन का बोध।।

घडा हृदय से ठंढ क्यों, उत्तर सुन लो भाय।
माटी-तन माटी मिले, गरमी क्यों दिखलाय।।

ऐ सूरज बारिश बुला, आम लोग बेहाल।
भींगे सभी फुहार में, हो धरती खुशहाल।।

जंगल, पर्वत, पेड़ संग, कटे सुमन के बाग।
सूरज का गुस्सा उचित, उगल रहा है आग।।

 श्यामल सुमन

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