विजय विचारों की ही होती
कहूँ कहाँ से मिली प्रेरणा ,और कहाँ से हिम्मत आई
विजय विचारों की ही होती ,साबित करता हूँ सच्चाई
नाम खुदे देखें पत्थर पर,और कहीं पढे किताबों में
कहीं कलाएँ,करतब,कौशल,निभते हैं रिति,रिवाजों में
कहीं परीक्षाअरु शिक्षा से,मिली सभी को सदा सिधाई
विजय विचारों की ही होती ,साबित करता हूँ सच्चाई
कहीं जालों से व छालों सेकहीं तिनके का देख घौंसला
कहीं चींटी से,कहीं मिट्टी से ,हरदम मिलता रहा हौसला
एक -एक से बनी एकता ,तब जाकर यह जीत जुटायी
विजय विचारों की ही होती ,साबित करता हूँ सच्चाई
कहीं पसीने की बूंदों से , कहीं दर्द में सुनकर चंगा
कहीं अपनों का प्यार दुलार ,कहीं लहराता देख तिरंगा
कहीं जोश का जलवा देखा,डरती संग चलती परछाई
विजय विचारों की ही होती ,साबित करता हूँ सच्चाई
कहीं समाधि तो कहीं उपाधि,कही तानों ,गानों का दौर
कहीं गर्जन सेअर्जन दर्जन ,कहीं ताली , गाली का शौर
कहीं खून व जुनून देखके,कहीं "नफे"कि सुन कविताई
विजय विचारों की ही होती , साबित करता हूं सच्चाई
नफे सिंह योगी मालड़ा
महेंद्रगढ़ हरियाणा
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