उड़ान
मैने पूजा की
अचर्ना की,और
भगवान प्रसन्न हुए।
बोले,
वत्सला,कुछ मागों।
अविलम्ब,मैंने मांग लिया
मुझे पंख चाहिए
भगवान तथास्तु बोल कर
तत्काल अन्तर्धान हो गए
मैने खुशी से सब को
बातें अपनी बतलायी
सबने मुझे मूर्ख समझा
और मेरी खिल्ली उड़ायी।
नासमझ!
मुझे हीं बुला लिया होता।
ऐशो-आराम की कुछ चीजें मांग लिया होता !
सब की सुन रही थी
और मन हीं मन
इन प्रश्नों का जाल बुन रही थी।
कब करेगा ये समाज
मेरे आन्तरिक गुणों का मूल्यांकन ?
नारी हूं मैं।
आकाश दिख रहा है
विस्तार देखना है
पंख मिल गये हैं
उड़ान भरना है।
वीणा पाण्डेय भारती
मैने पूजा की
अचर्ना की,और
भगवान प्रसन्न हुए।
बोले,
वत्सला,कुछ मागों।
अविलम्ब,मैंने मांग लिया
मुझे पंख चाहिए
भगवान तथास्तु बोल कर
तत्काल अन्तर्धान हो गए
मैने खुशी से सब को
बातें अपनी बतलायी
सबने मुझे मूर्ख समझा
और मेरी खिल्ली उड़ायी।
नासमझ!
मुझे हीं बुला लिया होता।
ऐशो-आराम की कुछ चीजें मांग लिया होता !
सब की सुन रही थी
और मन हीं मन
इन प्रश्नों का जाल बुन रही थी।
कब करेगा ये समाज
मेरे आन्तरिक गुणों का मूल्यांकन ?
नारी हूं मैं।
आकाश दिख रहा है
विस्तार देखना है
पंख मिल गये हैं
उड़ान भरना है।
वीणा पाण्डेय भारती
No comments:
Post a Comment