उलझन में ही जली आ रही
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दुष्यंतों की परम्परा भी देखो अबतक चली आ रही।
इस चक्कर में सचमुच कैसै शकुंतलाएं छली आ रही।।
आया था जो सुलझाने को उलझा करके चला गया,
आज तलक की मेरी जिंदगी उलझन में ही जली रही।
चूर-चूर मैं हुई अभी तक तेरे तौर तरीकों से,
खुद को तराशूं खुद के ढंग से आशायें पली आ रही।
पहली - पहली मुलाकात में तुम हर्षित होकर बोले,
मेरे घर में कितनी सुंदर देखो चल कर कली आ रही।
कई तरह के सपने लेकर चली भारती नयी डगर,
जीवन की सारी उम्मीदें लगता जैसे टली आ रही।
वीणा पाण्डेय भारती
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दुष्यंतों की परम्परा भी देखो अबतक चली आ रही।
इस चक्कर में सचमुच कैसै शकुंतलाएं छली आ रही।।
आया था जो सुलझाने को उलझा करके चला गया,
आज तलक की मेरी जिंदगी उलझन में ही जली रही।
चूर-चूर मैं हुई अभी तक तेरे तौर तरीकों से,
खुद को तराशूं खुद के ढंग से आशायें पली आ रही।
पहली - पहली मुलाकात में तुम हर्षित होकर बोले,
मेरे घर में कितनी सुंदर देखो चल कर कली आ रही।
कई तरह के सपने लेकर चली भारती नयी डगर,
जीवन की सारी उम्मीदें लगता जैसे टली आ रही।
वीणा पाण्डेय भारती
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