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भगत सिंह
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“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा”

“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।”

“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।”

“महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।”

Monday, June 17, 2019

उलझन में ही जली आ रही - ( वीणा पाण्डेय भारती )

उलझन में ही जली आ रही
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दुष्यंतों की परम्परा भी देखो अबतक चली आ रही।
इस चक्कर में सचमुच कैसै शकुंतलाएं छली आ रही।।

आया था जो सुलझाने को उलझा करके चला गया,
आज तलक की मेरी जिंदगी उलझन में ही जली रही।

चूर-चूर मैं हुई अभी तक तेरे तौर तरीकों से,
खुद को तराशूं खुद के ढंग से आशायें पली आ रही।

पहली - पहली मुलाकात में तुम हर्षित होकर बोले,
मेरे घर में कितनी सुंदर देखो चल कर कली आ रही।

कई तरह के सपने लेकर चली भारती नयी डगर,
जीवन की सारी उम्मीदें लगता जैसे टली आ रही।

वीणा पाण्डेय भारती

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