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भगत सिंह
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“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा”

“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।”

“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।”

“महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।”

Monday, June 17, 2019

मुठ्ठी भर धूप - ( वीणा पाण्डेय भारती )

मुठ्ठी भर धूप
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कच्ची उम्र के बच्चे
जब कंधों पर फटी बोरियां
लटकाए, सारा दिन
शहर की गलियों को
नापते रहते हैं और
कूड़ेदान में
दुनिया के लिए बेमतलब
हो चुकी चीजों से
अपने मतलब की चीजें
तलाशते हैं जो
उनकी जिंदगी का
अनमोल हिस्सा है।

इन सबकी माँ
कोयले की अंगीठी की तरह
सारा दिन धुआंती रहती हैं

कितने रमुआ, होरी, राजा
कच्ची दारू के नशे में
अपने अपने झोपड़-पट्टी को
सर पे उठाए हुए हैं
और बजा रहे हैं
खाली बरतनों का बाजा

यह एक दिन की बात नहीं
बल्कि सालों साल से
इसी तरह का माहौल
हरदिन गरमाया हुआ है
पेट भरने के जुगाड़ में...

मन के भीतर
ठन गया है
विचारों का महाभारत
आखिर इनके हिस्से की
मुट्ठी भर धूप
इन्हें कब, कहाँ और
कैसे मिलेगी?

वीणा पाण्डेय भारती

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