धरा गगन का हो सम्मान
संसाधन का दोहन करते
और प्रकृति पर करते वार
यही हाल रहा मानव जो
अपने पांव कुल्हाड़ी मार।
समझ - समझ के समझ ना पाये
करते रहते हम अभिमान
प्रकृति जहां क्रोधित हो जाये
मिट जाता है नाम निशान।
क्यों ना हम एक पेड़ लगायें
धरती का कर दें श्रृंगार
बारिश भी हो उचित समय पर
इन्द्र धनुष जीवन संसार।
जल, जंगल, जमीन बचा कर
धरा-गगन का हो सम्मान
सुन्दर रुप रसीली दुनिया
हर होठों पर हो मुस्कान।
वीणा पाण्डेय भारती
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