सर पे ताज और पैरों में जंजीर देखी,
मैंने आज ऐसी ही एक तस्वीर देखी।
जिसने लूटा है गुलशन को बहारों के नाम,
उनके हाथों मे कलियों की तकदीर देखी ।
लावारिस लाश थी मजहब पुछ रहे थे सभी,
हथेलियों पर मोहब्बत की नही लकीर देखी,।
गुनाह खुदा के नाम सर उतरा बंदे का,
बंदगी ऐसी भी होगी यह नजीर देखी।
जला के शहर अखबार लिए वह बैठा है,
लाश गिनने की हुनर उसकी बेनजीर देखी ।।
कुमार बसन्त
मैंने आज ऐसी ही एक तस्वीर देखी।
जिसने लूटा है गुलशन को बहारों के नाम,
उनके हाथों मे कलियों की तकदीर देखी ।
लावारिस लाश थी मजहब पुछ रहे थे सभी,
हथेलियों पर मोहब्बत की नही लकीर देखी,।
गुनाह खुदा के नाम सर उतरा बंदे का,
बंदगी ऐसी भी होगी यह नजीर देखी।
जला के शहर अखबार लिए वह बैठा है,
लाश गिनने की हुनर उसकी बेनजीर देखी ।।
कुमार बसन्त
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