मैं
हिंदी हूँ l
देश
की बिंदी हूँ l
मेरा
जन्म विरोधों में हुआ है l
जन्म
से ही मारने का जतन हुआ है l
मैं
तुलसी की बिरवा की भाँति -
हर
भारतीय के घर और जुबां पर बसती रही हूँ l
स्वर
और व्यंजन मेरे दो संतान हैं,
जिनसे
मेरी पहचान है l
निज
घर परायेपन का दंश मिला है l
यूँ
तो मैं राजभाषा हूँ
पर
साथ सौतन अंग्रेजी खड़ी है l
आम
की भाषा बन संपर्क भाषा बनी हूँ l
ख़ास
की भाषा न होने का दंश
सदा
भुगतना पड़ा है l
प्राचीन
और नवीन भाषा की कड़ी हूँ l
वैज्ञानिक
हूँ, तकनीक को अभिव्यक्त करती हूँ
काव्य
और साहित्य की भाषा हूँ l
अलंकार,
रस, छंद में बहती हूँ l
भाव
और ध्वनियों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति हूँ l
देशी
- विदेशी भाषाओं को समाहित किए हूँ l
अपनों
की मानसिकता के कारण
अपने
घर में अपमानित होती हूँ l
मेरे
अपने मेरी सौतन का साथ देते हैं
और
मुझको अपनाने से कतराते हैं l
मेरे
अपनों के मन में भय है कि
कहीं
मुझे अपनाने से उनका दबदबा न घट जाए l
मान
और सम्मान में कमी न आ जाए l
इसलिए
हिंदी माध्यम विद्यालय को
कभी
उच्च दृष्टि से नहीं देखते हैं l
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