प्रतीक्षा
नहीं खत्म होने वाली
वह मेरी 'प्रतीक्षा'
तुम क्यों आस लगाए बैठी हो?
सम्मोहक वाणी
संजीवनी बन
पहुंच सकेगी मुझ तक?
क्या सोयी हुई चेतना को जगा सकेगी?
असंभव! असंभव!!
तभी, अंतरमन से आवाज आयी
संभव,
तुम दीप जलायें
देहरी पर खड़ी रहो
आयेगी
पगध्वनि तुम तक
दस्तक भी देगी
तुम्हारी चेतना को।
वीणा पाण्डेय भारती
नहीं खत्म होने वाली
वह मेरी 'प्रतीक्षा'
तुम क्यों आस लगाए बैठी हो?
सम्मोहक वाणी
संजीवनी बन
पहुंच सकेगी मुझ तक?
क्या सोयी हुई चेतना को जगा सकेगी?
असंभव! असंभव!!
तभी, अंतरमन से आवाज आयी
संभव,
तुम दीप जलायें
देहरी पर खड़ी रहो
आयेगी
पगध्वनि तुम तक
दस्तक भी देगी
तुम्हारी चेतना को।
वीणा पाण्डेय भारती
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