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भगत सिंह
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“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा”

“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।”

“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।”

“महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।”

Monday, June 17, 2019

रस्ता वही दिखाओ - ( वीणा पाण्डेय भारती )

रस्ता वही दिखाओ

अन्धकार के गर्त से बाहर,
हाथ पकड़ ले जाओ।
उजियारों के गाँव जो जाए,
रस्ता वही दिखाओ।।

देखी है दोरंगी दुनिया,
छल प्रपंच का जाल यहाँ।
फँसा कबूतर जाल के अन्दर,
जाए भी तो जाए कहाँ?
अन्तर्मन में द्वन्द मचा है,
आकर तुम सुलझाओ।
उजियारों के गाँव जो जाए,
रस्ता वही दिखाओ।।

कितने कितने प्रश्न खड़े हैं,
डाल के अपना डेरा।
किसने साँपों की बस्ती में,
बीन बजा कर छेड़ा।
दहक रही आँखों में ज्वाला,
आकर इसे बुझाओ।
उजियारों के गाँव जो जाए,
रस्ता वही दिखाओ।।

द्वेष-घृणा के जहर को देखो,
जन-जन टूट रहा है।
अपने अपने सन्नाटों के,
अन्दर घूट रहा है।
कटना - बँटना छोड़ इन्हें,
जुड़ने की अदा सिखाओ।
उजियारों के गाँव जो जाए,
रस्ता वही दिखाओ।।

वीणा पाण्डेय भारती

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