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भगत सिंह
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“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा”

“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।”

“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।”

“महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।”

Monday, June 17, 2019

सूरज इन्तजार का - ( वरुण प्रभात )

सूरज इन्तजार का

सुबह से शाम, शाम से रात,
और फिर रात से सुबह का वही पहर
इन्तजार इन्तजार इन्तजार
दिन बदल जाता है
तिथियाँ बदल जाती है
नही बदलती इन्तजार की परिभाषा
उसका वजूद, खामोशी उसकी
"सुनो दोस्त "एकटक निहारती आँखे
धीरे-धीरे हो जाती है पत्थर
मर जाते है उसके भाव
सूख जाता है समन्दर
फिर कुछ नही बचता
कोरी साबित होती है संवेदना
लतीफा लगता है मरहम
और जिन्दगी बरसाती नाले के उस पार बनी
उबड़-खाबड़ पगडंडियों की तरह
जिस पर रेंगते हुए मिलते है कुछ कीड़े
यदा-कदा संभल-संभल कर
गुजर जाता है कोई
उसके वजूद की अवधारणा को मान्यता देकर
दोस्त तुम होते हो ,हम होते है
लेकिन जिन्दगी ?
होती है, नही के बराबर
धड़कनों का तेज चलना, जिन्दगी नहीं
धमनियों मे रक्त का संचार, जिन्दगी नहीं
जिन्दगी आश्वासन या टुकड़ा भर
रोटी भी नही
देखना हों कभी जिन्दगी को करीब से
महसूसना हो उसकी नर्माहट को
परखना हो उसकी संजीदगी को
जीना हो उसे
तो" झांक लेना दोस्त पथरायी उन आँखों मे
जिसमे तुम्हारे इन्तजार का सूरज उगा था! !

वरुण प्रभात

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