गरजतीं हों जहाँ तोपें ,
हवा की महक बारूदी हो,
मचले रक्त धमनियों में,
जैसे दरिया तुफानी हो,
हो महाकाल का तांडव जहाँ,
रण चंडी उधम मचाती हों,
है वही मेरा प्रवास स्थल,
मैं उसके हीं प्रेम-पाश बँधा,
जहाँ विजय या वीरगति के संग,
गुँजे नभ मे जय जय ही सदा...।।।।
कुमार बसन्त
हवा की महक बारूदी हो,
मचले रक्त धमनियों में,
जैसे दरिया तुफानी हो,
हो महाकाल का तांडव जहाँ,
रण चंडी उधम मचाती हों,
है वही मेरा प्रवास स्थल,
मैं उसके हीं प्रेम-पाश बँधा,
जहाँ विजय या वीरगति के संग,
गुँजे नभ मे जय जय ही सदा...।।।।
कुमार बसन्त
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