कहीं आजाद है रोता,
कहीं भगत बिलखता है,
कि उनके मुल्क मे देखो
जाने क्या अब ये होता है,
कि जिसकी खातिर गोली,
सुली को हँसकर था चुमा,
उसी धरती पर एक बचपन,
एक एक रोटी को रोता है।।
कुमार बसन्त
कहीं भगत बिलखता है,
कि उनके मुल्क मे देखो
जाने क्या अब ये होता है,
कि जिसकी खातिर गोली,
सुली को हँसकर था चुमा,
उसी धरती पर एक बचपन,
एक एक रोटी को रोता है।।
कुमार बसन्त
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