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भगत सिंह
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“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा”

“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।”

“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।”

“महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।”

Saturday, October 22, 2022

आइए डिजिटल उपवास की ओर बढ़ते हैं !

 


आइए डिजिटल उपवास की ओर बढ़ते हैं!

हम और आप में से ज्यादातर लोग सोशल मीडिया के आदि हो रहे हैं। आज सोशल मीडिया का इस्तेमाल कुछ लोग दोस्त और रिश्तेदारों से जुड़ने के लिए कर रहे हैं, तो कुछ लोग वीडियो देखने के लिए। सोशल मीडिया हम सभी के लिए एक जाना पहचाना व लोकप्रिय माध्यम है। टेक्नोलॉजी और स्मार्ट उपकरणों के युग में आज नेटफ्लिक्स, अमेजॉन प्राइम और हॉटस्टार जैसे माध्यमों में फिल्म, वेब सीरीज आदि देखना और फेसबुक, टि्वटर पर स्क्रॉल करना हर उम्र के लिए एक आम बात हो गई है। यह इंसानी सभ्यता और अस्तित्व के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

जबसे सोशल मीडिया आया है तब से हम अपने परिवार के साथ रहते हुए भी अलग-थलग महसूस करते हैं। सोशल मीडिया से युवाओं में अवसाद और डिप्रेशन का खतरा बढ़ रहा है, इसके साथ-साथ चिड़चिड़ापन भी दिखाई दे रहा है। हमारे समाज में सोशल मीडिया के आने के बाद लोगों में मोटापा, अनिद्रा और आलस्य की समस्या भी सामने आ रही है। कुछ रिसर्च बताते हैं कि सोशल मीडिया के आने के बाद से सुसाइड के मामले में बढ़ोतरी हुई है। सोशल मीडिया चेक ् और स्क्रोल करना, पिछले एक दशक के मुकाबले तेजी से लोकप्रिय गतिविधि बन गई है। सोशल मीडिया आज सभी देशों के लिए एक व्यावहारिक लत बन गई है।

आज फोन बड़े से लेकर बच्चों तक के लिए जरूरी हो गया है। जहां बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन हो रही है तो वही‌ बड़ों को अपडेट रखने के लिए फोन का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। फोन का ज्यादा इस्तेमाल करने से लोगों में सोशल मीडिया की लत लग रही है। जिससे लोगों की नींद पर असर पड़ रहा है और नजरें तेजी से कमजोर हो रही है। नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार अगर कोई व्यक्ति एक हफ्ते तक लगातार सोशल मीडिया का प्रयोग करता है, तो वह अपनी एक रात की नींद खो चुका होता है।

इसके अलावा हमारे युवाओं में ऑनलाइन सट्टेबाजी और ऑनलाइन खेलों में पैसा लगाने की लत भी सामने आ रही है। सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से हमारे युवाओं में ना सिर्फ आत्मविश्वास की कमी आ रही है, बल्कि अकेलेपन का भी आभास लगातार बढ़ता जा रहा है। सोशल मीडिया से सबसे अधिक प्रभावित हमारा युवा वर्ग हो रहा है। सोशल मीडिया के कारण आज कई युवा आत्महत्या कर रहे हैं तो कई युवा मानसिक अस्वस्थ का शिकार हो रहे हैं। यह समस्या आने वाले समय में और बढ़ने की ओर इशारा करती है।

लोग घंटों ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर फिल्म, वेब सीरीज, कॉमेडी इत्यादि चीजें देख रहे हैं। जिससे लोग अपने समय का सही से इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। एक व्यक्ति तभी स्वस्थ होगा, जब उसे पर्याप्त आहार और नींद मिलेगी। हम सभी के सामने एक प्रश्न है- सोशल मीडिया से होने वाली समस्याओं से कैसे निपटा जाए ? जवाब- आज हमें कम से कम सप्ताह में एक या दो बार सोशल मीडिया फ्री दिवस या डिजिटल उपवास करने की जरूरत है। इसके अलावा हमें सोशल मीडिया का उपयोग उतना ही करना है, जितना वह हमारे लिए जरूरी है। अपने बच्चों को भी हमें सोशल मीडिया के खतरों व समस्याओं से रूबरू करवाना होगा और सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से रोकना होगा। कंपनियों, स्कूलों और सरकारी संस्थानों को भी हफ्ते में एक दिन मोबाइल फ्री डे मनाने की जरूरत है।

दीपक कोहली

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